पत्रकारिता की दुनिया के कई बड़े सम्मानों के बाद रवीश कुमार को प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय रैमॉन मैगसेसे सम्मान वस्तुतः पत्रकारिता की जनपक्षधरता और उच्चतम मानवीय मूल्यों का सम्मान है।
रीढ़विहीन, बिकी हुई और बहुत हद तक वीभत्स पत्रकारिता के इस दौर में रवीश कुमार उन गिनती के पत्रकारों में एक हैं जो तमाम धमकियों और प्रलोभनों के बावजूद सत्ता प्रतिष्ठानों के आगे झुकने की जगह सत्ता की निरंकुशता, सांप्रदायिकता और छल को बेनक़ाब करते रहे।
रवीश को मिला प्रतिष्ठित रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार, जूरी बोली- आम आदमी की बात करता है ये पत्रकार
हिंदी मीडिया चैनलों की बेशर्म और अराजक चाटुकारिता के बीच देश के आमजन के सपनों, व्यथाओं और संघर्ष को अभिव्यक्ति देने वाला एनडीटीवी पर उनका एक घंटे का कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ ताज़ा हवा के झोंके की तरह है जो पत्रकारिता के घुप्प अंधेरे में भी यह अहसास दिलाता है कि अभी सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है। बधाई रवीश जी !
धूप में शजर होना
इश्क़ में शहर होना
आग कुछ बची है इधर
आग तुम उधर होना !
आपको बता दें कि रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार एशिया के व्यक्तियों और संस्थाओं को उनके अपने क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय कार्य करने के लिए प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार फिलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रैमॉन मैगसेसे की याद में दिया जाता है।
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ध्रुव गुप्त
Congratulation Ravishji ! I m proud of you.
God bless you & keep you !
Hounrable Shree maan Ravish kumar ji, Aap ko Ramon Magasaysay Award 2019, se Sammanit hone pe Bahut Bahut Bahut Mubarak ho. Congratulation.
पत्रकारों के नाम में मेरे पिता श्री नाम भी शामिल था वह और उनके परिजनों ने जो दौर देखे हैं, वह यदि लिखे जाएं तो पूरी रामचरितमानस की तरह एक ग्रंथ मोटी पुस्तक की रचना करने में समर्थ हैं । ये दौर उनके देहावसान के आठ साल बाद भी उतनी ही शिद्दत से आज भी परोसें जाते नजर आ रहे हैं,सरकारै कितनी बदल गई लेकिन ना बदला है वह असंवेदनशील रवैया जो कि तंत्र की रग रग में समाया हुआ,शरीर में खून की तरह बहता नजर आ रहा है।
तीन तलाक़ पर जो बयान, विरोध स्वरूप सामने आए हैं,यदि उन पर गौर किया जाए तो यह तथ्य सामने आ जाएगा कि शासन से लोगो की दूरी का मंजर एक ही दिन में अथवा किसी एक ही किसी अवहेलना या घटना की वजह से,निर्मित नहीं हुआ है, इसके पीछे भी बहुत गहरी साज़िश काम करती आई है, न्यायालयों में लंबित मामलों की बहुत बड़ी संख्या में आने से अधिक मामले तो ऐसे हैं जो कि सरकारी विभागों के द्वारा दायर कराए गए हैं,अब जजौ की संख्या बढ़ाने की बात सामने आई है,यह जानते हुए भी कि संख्या को बढ़ाना आसान है किन्तु इसे कम करने की जो प्रक्रिया है वह इतनी जटिल है कि शायद संख्या घटाया जाना संभव ही ना हो पाए।
जनता के भार(टैक्स)को बढ़ाने के लिए संकल्पित सरकार की जय हो या पराजय जनता की तो क्षय ही होना तय है।