भारत में आए दिन संविधान द्वारा मिलने वाले SC/ST और OBC आरक्षण पर उंगली उठायी जाती है। कभी आरक्षण को खत्म करने की बात कही जाती है, कभी आर्थिक आधार पर करने की। बीच-बीच में ‘क्रीमी लेयर’ का मुद्दा उठता रहता है।

ताजा विवाद भी ‘क्रीमी लेयर’ को लेकर है। दरअसल बहुत पहले से भारत के कुछ खाए अघाए सवर्ण चाहते थे कि जिस प्रकार से OBC आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू है, उसी प्रकार SC/ST आरक्षण में भी क्रीमी लेयर लागू हो। 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट का एक महत्वपूर्ण फ़ैसला आया है। ये फैसला प्रमोशन में आरक्षण के नाम से चर्चा में है।

लेकिन अपने फैसले के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने जो खेल किया है वो भविष्य में संकट पैदा कर सकता है। फ़ैसला प्रमोशन में आरक्षण पर होना था, लेकिन कोर्ट ने SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर लगाने की बहस छेड़ दी है।

ये फ़ैसला यह कहता है कि एससी और एसटी रिजर्वेशन में भी क्रीमी लेयर का प्रावधान किया जा सकता है और यह करने का अधिकार सरकारों को ही नहीं, अदालतों को भी है।

क्या है क्रीमी लेयर?

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल क्रीमी लेयर को परिभाषित करते हैं लिखते हैं- क्रीमी लेयर का मतलब है कि किसी सामाजिक समूह का तरक्कीशुदा तबका। वहीं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल क्रीमी लेयर का उल्लेख करते हुए लिखते हैं-

‘क्रीमी लेयर शब्द का भारतीय संदर्भ और समकालीन इतिहास: यह शब्द न संविधान में है, न संविधान सभा की बहसों में है! ‘मंडल’ दौर के आरक्षण विरोधी-लहकान में लगे अंग्रेजी के कुछ अखबारों ने इस शब्द को चलन और विमर्श का हिस्सा बनाया! फिर वह न्यायिक फैसलों का हिस्सा बन गया! आजकल फिर वह चर्चा में है!’

क्यों SC/ST आरक्षण में नहीं होना चाहिए क्रीमी लेयर?

ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू होता है। 1992 में इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। नौ जजों की बेंच ने अपने जजमेंट के माध्यम से OBC में क्रीमी लेयर के प्रावधान पर अपनी मुहर लगा दी। 1993 में क्रीमी लेयर के साथ लागू हुआ ओबीसी आरक्षण।

इसका मतलब हुआ OBC समाज के आने वाले आईएएस अफसर की बेटी ओबीसी आरक्षण नहीं ले सकती। OBC आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रवधान इसलिए भी संभव हुआ क्योंकि ओबीसी आरक्षण का आधार सामाजिक पिछड़ापन और शैक्षणिक पिछड़ापन के साथ साथ आर्थिक पिछड़ापन भी है।

इस देश का हर चौथा व्यक्ति दलित या आदिवासी है मगर स्वरोजगार में वो कहाँ खड़ा है ? सरकार की नीयत पर सवाल है

लेकिन SC/ST आरक्षण का आधार सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन है। अनुसूचित जाति में होने का आधार अस्पृश्यता है। इसके अंतर्गत वह जातियां हैं, जिन्हें हिंदू अछूत मानते हैं। इसमें आर्थिक पिछड़ेपन का कोई जिक्र नहीं है। इसलिए अगर भविष्य में SC/ST आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रवधान होता है तो ये बड़े विवाद को जन्म देगा जिसकी शुरूआत हो चुकी है।

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल क्रीमी लेयर को सवर्णों जातियों का षड्यंत्र मानते हैं। उन्होंने फेसबुक पर लिख है- क्रीमी लेयर एक षड्यंत्र है. कैसे, जानिए…

1. किसी भी समाज के हक या स्वार्थ की लड़ाई उस समाज का क्रीमी लेयर ही लड़ता है. सवर्णों के स्वार्थ की लड़ाई टूटी साइकिल पर चलने वाला भिखारी ब्राह्मण पुजारी नहीं, वहां के क्रीम यानी मोहन भागवत या जस्टिस दीपक मिश्रा या देवकीनंदन ठाकुर, या वकील शांति भूषण, या बाबा रविशंकर या सवर्ण संपादक, प्रोफेसर, वकील जैसे लोग लड़ते हैं।

2. अगर किसी समाज के क्रीमी लेयर को उस समाज से अलग कर दिया जाए या उनके हित अलग अलग हो जाएं तो उस समाज की आवाज कमजोर हो जाती है।

3. यही वजह है कि भारत में OBC रिजर्वेशन लागू नही हो पाता है कि लेकिन SC-ST रिजर्वेशन काफी हद तक असरदार है। OBC का जो तबका OBC के हक की लड़ाई लड़ने की क्षमता रखता है, उसे क्रीमी लेयर में डाल दिया गया है। आरक्षण लागू करने या आरक्षण बचाने में क्रीमी लेयर ओबीसी का कोई इंट्रेस्ट नहीं होता।

4. अगर SC-ST में भी क्रीमी लेयर लागू किया गया और इस समाज के असरदार लोगों का हित और समाज का हित अलग अलग हो गया तो SC-ST कोटा फिर कभी लागू नहीं हो पाएगा।

5. खाली रह गई सीटों पर कौन समाज कब्जा जमाता है, यह बताने की आपको जरूरत नहीं है।

दिलीप मंडल का मानना है न्यायपालिका दलित और पिछड़ा विरोधी फैसले इसलिए भी करता है क्योंकि न्यायपालिका में SC/ST और OBC की भागीदारी बहुत कम हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस समय एक भी दलित जज नहीं है।

मंडल सवाल उठाते हुए लिखते हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में क्रीमी लेयर लागू हो कि जजों के बच्चे जज नहीं बनेंगे तो क्या सवर्ण, खासकर ब्राह्मण इसका समर्थन करेंगे?

चीफ़ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा के सगे भतीजे जस्टिस दीपक मिश्रा क्रीमी लेयर में हैं कि नहीं? बिना जज की परीक्षा पास किए सिर्फ़ संपर्कों के आधार पर वे वक़ील से हाई कोर्ट में जज, फिर हाई कोर्ट में चीफ़ जस्टिस, फिर सुप्रीम कोर्ट में जज और फिर सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस बन गए।

वे उन 200 परिवारों में से हैं, जिनसे 80% से ज़्यादा जज आते। यह कोलेजियम का कलंक है। इसलिए सवर्णों, ख़ासकर ब्राह्मणों को तो मेरिट की बात करनी नहीं चाहिए। जनेऊ कनेक्शन ही उनका मेरिट है।

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