उत्तरप्रदेश की योगी सरकार बिजली वितरण यानि बिजली को उपभोक्ता तक पहुँचाने के लिए निजीकरण करने जा रही है। इसी के विरोध में राज्य के बिजली कर्मचारी सड़कों पर उतर आए हैं।
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, बिजली कर्मचारियों ने विरोध जताने के लिए सड़क पर उतरकर पकोड़े बेचने शुरू कर दिए हैं।
बता दें, कि उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) ने बिजली वितरण ठेके के लिए टेंडर निकाला था। नीजिकरण के बाद निजी कपनियां नए कनेक्शन लगाएगी, मीटर बदलेंगी, मीटर रीडिंग लेंगी, बिजली बिल देंगी और पैसे वसूलेंगी। जबकि इस सब का रखरखाव सरकार करेगी।
पांच जिलों की बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में देने के फैसले के विरोध में बिजली निगम के अफसरों और कर्मचारियों ने शनिवार को चाय-पकौड़ा बेचा। पकौड़े का नाम अमित शाह पकौड़ा और चाय को मोदी चाय बताया। कर्मियों ने सरकार विरोधी नारे लगाए और कहा कि निजीकरण से बेरोजगारी में भी बढ़ोत्तरी होगी। चाय-पकौड़ा खरीदने को लोगों की भारी जमा रही।
21 मार्च से आंदोलन कर रहे बिजली कर्मियों ने विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति के बैनर तले राजकीय पालिटेक्निक असुरन चौराहा के पास पकौड़े की दुकान लगाई। इस दौरान उन्होंने कहा कि निजीकरण से न सिर्फ बिजली कर्मियों व उपभोक्ताओं का नुकसान होगा वरन बेरोजगारी भी बढ़ेगी। निजी कंपनी ज्यादा से ज्यादा रुपये कमाने आएगी।
कर्मचारियों ने कहा कि निजी कम्पनियाँ कम संसाधन में काम चलाएंगी, इस कारण पहले से काम कर रहे लोगों का रोजगार छिनेगा। आइटीआई और पालिटेक्निक करने वाले छात्रों को प्राइवेट कंपनी नौकरी नहीं देगी। उसे कम रुपये में काम करने वाले कर्मचारी चाहिए होंगे, भले ही वह प्रशिक्षित न हों।
गौरतलब है कि केंद्र की मोदी सरकार भी बिजली वितरण का पूरे देश में निजीकरण करने के लिए बिजली (संशोधन) विधेयक 2014 लाई है। आने वाले संसदीय सत्र में इस बिल पर बहस हो सकती है। इस बिल का भी देशभर के बिजली कर्मचारी विरोध कर रहे हैं।
संघर्ष समिति के सदस्यों ने कहा कि केंद्र सरकार की नीतियों से बेरोजगारी बढ़ रही है। निजीकरण से व्यवस्था अच्छा होने का दावा महज़ दिखावा है। शहर में बिजली बिल निकालने की व्यवस्था का संचालन निजी एजेंसी करती है।
बिजली कर्मचारियों का कहना है कि ये व्यवस्था दिल्ली में लागू करी गई थी जहाँ ये नाकामयाब साबित हुई। इस व्यवस्था से बिजली के बिल महंगे होंगे और जनता को कोई फायदा नहीं होगा। दिल्ली में भी ये बिल इतने महंगे हो गए थे कि ये 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया था।