Tanya Yadav

प्रदर्शनकारी किसान पिछले एक साल से अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हुए हैं। 14 महीने से चल रहे इस आंदोलन को स्थगित करने की घोषणा की जा चुकी है। 11 दिसंबर को किसान बॉर्डर से वापस अपने घर लौट जाएंगे। मोदी सरकार ने किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने, परली जलाने पर आपराधिक मामले दर्ज ना किए जाने, एमएसपी लागू करने के लिए कमिटी बनाने समेत आंदोलन के दौरान मारे गए सभी किसानों के परिवारों को मुआवज़ा देने की मांग को मंज़ूर कर लिया है। कृषि कानूनों की वापसी पर पहले से ही मुहर लग चुकी है।

ऐसे में ज़रूरत है आंदोलन के उन पलों को याद करने की जो इतिहास में दर्ज हो गए।

  • न्यूज़ एजेंसी पीटाई के पत्रकार रवी चौधरी ने अपने कैमरे में एक जवान द्वारा किसान को लाठी मारे जाने के पल को कैद कर लिया। पिछले साल के नवंबर महीने में सिंघु बॉर्डर पर किसान और सुरक्षाकर्मियों के बीच झड़प हुई थी। जिसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारी किसानों पर लाठीचार्ज कर दिया। उसी समय रवी ने सुरक्षाकर्मी द्वारा एक बुज़ुर्ग किसान को मारने की ये तस्वीर निकाल ली। इसी का हवाला देते हुए विपक्षी दल के नेताओं समेत सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से सवाल पूछे। राहुल गाँधी ने कहा था, “बड़ी ही दुखद फ़ोटो है। हमारा नारा तो ‘जय जवान जय किसान’ का था लेकिन आज PM मोदी के अहंकार ने जवान को किसान के ख़िलाफ़ खड़ा कर दिया। यह बहुत ख़तरनाक है।”

  • सिंघु बॉर्डर पर पुलिस और किसानों के बीच हुए टकराव के बाद केवल इसी तस्वीर ने सुर्खियां नहीं बटोरी। 27 नवंबर 2020 को पुलिस के कार्यवाही का निशाना 71 वर्षीय सरदार संतोख सिंह भी बने थे। बुलेट की शैल से आँख के ठीक निचे संतोख को चोट लगी थी। उनकी घायलावस्था में तस्वीर निकाली गई, और वो इतिहास में दर्ज हो गई।

  • भारत के फ़ोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीक़ी की हाल ही में अफगानिस्तान के हिंसाग्रस्त कंधार में हत्या कर दी गई थी। उन्होनें भी किसान आंदोलन की कुछ यादगार तस्वीरें खींची थीं। दानिश ने 21 फ़रवरी को अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर पंजाब के बरनाला में हुई किसानों और खेतिहर मज़दूरों की रैली की तस्वीर साझा की थी। उस रैली में किसानों की भीड़ देखकर उनकी ताकत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

  • खेती-किसानी के कामों में महिलाओं की भागीदारी कम नहीं है, ठीक उसी तरह किसान आंदोलन में भी उनकी एहम भूमिका रही है। यूँ तो आंदोलन के दौरान महिला किसानों के चेहरे ज़्यादा चर्चाओं में नहीं रहे, लेकिन जब जनवरी महीने में महिलाओं ने ट्रेक्टर चलाकर देश की राजधानी की ओर कूंच किया तो मीडिया जगत में हलचल मच गई।
    पीटीआई की इस तस्वीर में ट्रेक्टर चलाती महिला किसानों का आत्मविश्वास देखने योग्य है।

  • मोदी सरकार की किसान-विरोधी मंशा तब सबके सामने आ गई जब दिल्ली-यूपी ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए बैरिकेडिंग और कीलों के ज़रिये किलाबंदी की गई.

सरकार ने आंदोलन को खत्म करने के लिए हर तरह के कदम उठाए, लेकिन किसानों के भी कदम नहीं डगमगाए। आखिर सरकार को किसानों की मांगे माननी ही पड़ी। देखना ये होगा कि क्या किसानों की एकता से बैकफुट पर हुई मोदी सरकार को विधानसभा चुनावों में भी इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा? माफ़ी मांग रहे प्रधानमंत्री मोदी की ‘कमज़ोर हुई छवि’ से भाजपा की राजनीति पर कितना असर पड़ेगा?

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