शाह जी ने प्रधानमंत्री जी को बाढ़ कहा है। उन्होंने शायद ठीक ही कहा है क्योंकि जुमलों की बाढ़ से देश के जवान और किसान तबाह हो रहे हैं।
जिस देश में हर आधे घंटे पर एक किसान की आत्महत्या का शर्मनाक आँकड़ा हो, वहाँ धर्म की बहस को राजनीति के केंद्र में रखने की कोशिश करने वाले लोग लोकतंत्र और मानवता, दोनों के अपराधी हैं। लगभग 52% किसान परिवार कर्ज़ में डूबे हुए हैं। प्रत्येक किसान पर लगभग 47 हज़ार रुपये का औसत कर्ज़ है। 1995 से लेकर अब तक तीन लाख से ज़्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं।