‘जाके पाँव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई’ अर्थात् जब तक खुद को दर्द ना हो तब तक दूसरे के दर्द की तीव्रता का एहसास नहीं हो पाता है। मौजूदा वक़्त में तुलसीदास की ये पंक्ति प्रधानमंत्री मोदी पर फिट बैठती है। क्योकिं नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री उम्मीदवार कई सपने दिखाए जिसमें किसानों का मुद्दा सबसे ऊपर रहा।
मगर महाराष्ट्र की विधानसभा की ओर बढ़ती हजारों की संख्या में किसानों ने दिखा दिया है कि सरकार बीजेपी चाहे राज्य में हो या फिर केंद्र में वो किसानों से वादा तभी करती है जब विपक्ष में होती है और सरकार में आते ही बीजेपी उसे जुमला योजना के तहत वादों को भूल जाती है।
प्रधानमंत्री मोदी के शानों शौकत में पिछले तीन सालों में कोई कमी नही हुई है बल्कि इजाफा ही हुआ है। मगर उन्हें किसानों का दर्द नहीं दिखाई देता है क्योकिं वो उनका अपना दर्द नहीं है। उन्हें अपना दर्द तब नज़र आता है जब अपनी साख बचाने के लिए वो खुद की आवाज़ तक को भाषण देते देते बैठा देते है।
सत्ता पाने के लिए जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गली गली मंदिर मंदिर और शहर शहर प्रचार करते रहते है वहां उन्हें सत्ता से जाने का डर होता है मगर किसानों के हालात पर नज़र डाले तो वो किसानों के हक में तभी बोलते है जब चुनाव हो।
शानदार लिबास से लैस पीएम मोदी के पहनावे की हर मीडिया चैनल तारीफ करते नहीं रुकता मगर किसानों की छाले पड़े पैरों पर मीडिया मौन साध लेता है क्योकिं वो उसका अपना दर्द नहीं है इसमें सत्ता नाराज़ हो सकती है इसलिए वो किसान के मामले पर शांत ही रहती है।
इसलिए जब पीएम मोदी शानदार चमचमाता हुआ जूता पहनते है तो इन हजारों किसानों को सन्देश दे रहे होते है की भारत अब कृषि प्रधान देश नहीं झूठी शानों शौकत वाला देश बन चुका है। जहां इंसानो का दर्द तभी समझा जाता है जब दूसरे इंसान को उस दर्द का एहसास हो, ऐसे ही विपक्षियों ने पीएम मोदी की सरकार को ऐसे ही ‘सूट बूट वाली सरकार’ कहा था।