अलविदा, स्वामी सानंद ! गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए स्वामी शिवानंद के नेतृत्व में पिछले कई दशकों से संघर्षरत हरिद्वार के मातृ सदन में पिछले 111 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे पर्यावरण के देश के सबसे बड़े योद्धाओं में एक, आई.आई. टी कानपुर के पूर्व प्राध्यापक 86-वर्षीय डॉ जी.डी अग्रवाल उर्फ़ स्वामी सानंद की मृत्यु एक सामान्य घटना नहीं है। बेटा
यह राज्य और केंद्र सरकारों की उदासीनता और संवेदनहीनता का नतीजा है जिन्होंने इतने दिनों तक उनकी ज़रूरी मांगों पर किसी सार्थक पहल की उम्मीद नहीं बंधाई।
स्वामी जी सिर्फ गंगा को खनन माफियाओं से बचा लेने और उसकी सफाई के लिए एक कारगर नीति और क़ानून बनाने की मांग कर रहे थे। कानूनन न सही, नैतिक रूप से तो उनकी मृत्यु हत्या ही मानी जाएगी।
माँ गंगा की क़समें खाने वाले बेशर्म नेताओं, सत्ता के लालच में तुमने एक तपस्वी की जान ले ली
कुछ सालों पहले इसी मातृ सदन में खनन माफियाओं के विरुद्ध 114 दिनों से अनशन पर बैठे स्वामी निगमानंद को अस्पताल ले जाकर संदिग्ध परिस्थितियों में प्रशासन के संरक्षण में खनन माफिया द्वारा मार डाला गया था।
इस मामले की जांच कछुआ गति से सी.बी.आई कर रही है। गंगा के लिए अनगिनत बार तपस्या पर बैठे स्वामी शिवानन्द की हत्या की लगातार कोशिशें होती रही हैं।
शर्मनाक है कि निर्मल गंगा का संकल्प लेकर सत्ता में आई केंद्र सरकार गंगा के नाम पर अरबों रुपयों की बन्दरबांट कर साढ़े चार साल से सत्ता में निश्चिंत बैठी है और उत्तराखंड की सरकार खनन माफियाओं से हर महीने करोड़ों की रकम उगाहने में लगी है।
नहीं रहे गंगा के असली पुत्र जीडी अग्रवाल, गंगा को बचाने के लिए 111 दिनों से कर रहे थे अनशन
आम जनता को गंगा में अपने पाप धो लेने भर से मतलब है। उस मैली गंगा में जिसका पानी हमारे कुकर्मों से अब न पीने लायक रहा, न नहाने लायक और न खेतों की सिंचाई के ही लायक। किसी को यह चिंता नहीं कि अगर गंगा नहीं रही तो न उत्तराखंड रहेगा, न उत्तर प्रदेश, न बिहार और न बंगाल।
हम बहुत शर्मिंदा हैं गंगा पुत्रों – स्वामी सानंद और स्वामी निगमानंद ! हम शर्मिंदा हैं, मां गंगे ! हमने तुम्हारी निर्मलता और अविरलता का ज़िम्मा तुम्हारे उस नकली बेटे को सौंप दिया जिसने कहा था कि मुझे गंगा मां ने बुलाया है।
दरअसल वह बहुरुपिया था जो तुम्हारी सफाई और हमारे पेट के हिस्से की रकम काटकर पूंजीपतियों की तिजोरियां भरने आया था।