राफेल घोटाले पर मोदी सरकार अब चौतरफा घिर चुकी है। रिलायंस को फायदा पहुंचाने के लिए देश के साथ की गई गद्दारी अब छुपाए नहीं छुप रही है। मोदी सरकार जितने भी झूठ बोल रही है सबका पर्दाफाश हो जा रहा है।
और इस बार तो खुद फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
फ्रांस्वा ओलांद ने कहा कि भारत सरकार ने ही सिर्फ रिलायंस के नाम का प्रस्ताव रखा था और किसी दूसरी कंपनी का विकल्प ही नहीं दिया था।
सवाल उठता है कि सरकार ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के नाम का प्रस्ताव क्यों नहीं दिया गया था?
क्या कुछ दिनों पहले बनी किसी प्राइवेट कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिलाना इतना जरुरी था कि देश की सरकारी कंपनी को दरकिनार कर दिया गया ?
HAL को पहले से मिला हुआ कॉन्ट्रैक्ट क्यों रद्द कर दिया गया ?
दरअसल, मनीष तिवारी के ट्वीट का जवाब देते हुए साउथ एशिया के कोरेस्पोंडेंट julien bouissou ने लिखा- फ़्रांस के राष्ट्रपति ने कहा है ‘रिलायंस के अलावा हमें कोई विकल्प ही नहीं दिया गया’
फ़्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांसा ओलांदे ने फ़्रांस के न्यूज़ संगठन ‘मीडियापार्ट’ के साथ इंटरव्यू में कहा है कि फ़्रांस ने रिलायंस को खुद नहीं चुना था बल्कि भारत सरकार ने रिलायंस कंपनी को पार्टनर बनाने का प्रस्ताव दिया था।
ओलांद का यह बयान ना सिर्फ रक्षामंत्री को कटघरे में खड़ा कर रहा है बल्कि प्रधानमंत्री मोदी पर भी सवाल उठाता है। क्योंकि सरकार के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के दखल के बिना इस तरह का फैसला कैसे लिया जा सकता है कि एकमात्र कंपनी का प्रस्ताव रखा जाए और डील के लिए एकमात्र विकल्प दिया जाए।
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत सरकार ने सिर्फ और सिर्फ रिलायंस के लिए राफेल की कॉन्ट्रैक्ट की मांग की। इस पर सफाई देते हुए रक्षा मंत्रालय की ओर से कहा जा रहा है कि उनके बयानों की जांच की जा रही है।
साथ ही ये भी कहा गया कि कारोबारी सौदे में सरकार का कोई रोल नहीं होता है-सरकार का ये बयान विवादास्पद भी है और हास्यास्पद भी।
इससे पहले हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के पूर्व प्रमुख एस राजू का भी बयान आया था कि एचएएल और दसॉल्ट के बीच समझौता हो गया था, फाइलें सरकार को सौंप दी गई थी और राफेल बनाने के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड तैयार भी था, लेकिन यह डील रिलायंस के साथ की गई।
साभार- NDTV