झारखण्ड की भाजपा सरकार गौरक्षा के नाम पर लोगों की हत्या करने वाले अपने नेताओं का बचाव कर रही है। लगभग 10 मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया है कि झारखण्ड सरकार गौरक्षा के नाम पर मार दिए गए मजलूम अंसारी के मामले में सही से जांच नहीं कर रही है।

बता दें, कि मार्च 2016 में, मवेशी व्यापारी मजलूम अंसारी और उसके बेटे इम्तियाज़ खान की तथाकथित गौरक्षकों ने अपहरण कर हत्या कर दी थी। अपहरण के बाद उन्हें मारा पीटा गया और फिर पेड़ से लटका दिया गया।

मानवाधिकार संगठनों ने अपने स्तर पर जांच कर सोमवार को रिपोर्ट पेश की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि मामले में आरोपियों के खिलाफ सबूत और गवाह दोनों मौजूद हैं लेकिन पुलिस सही से जांच नहीं कर रही है।

ये जांच न्यूयार्क के संगठन रिप्रेजेंटेटिव ऑफ़ अलायन्स फॉर जस्टिस, मुंबई के संगठन सिटिज़न जस्टिस फॉर पीस, दिल्ली के संगठन नेशनल अलायन्स ऑफ़ पीपल मूवमेंट, लन्दन के साउथ एशिया सोलिडेरिटी ग्रुप, लखनऊ के राही मंच और आदि संगठनों ने मिलकर की है।

मानाधिकार संगठनों ने मामले के तीन गवाहों से बात की है। इन्होने उन पांच लोगों को भी पहचान लिया है जिनपर इस घटना में शामिल होने का शक है। इनमें से एक भाजपा नेता विनोद प्रजापति भी है। इसके बावजूद पुलिस ने न तो प्रजापति का नाम एफआईआर में लिखा है न ही उससे कोई पूछताछ की है।

रिपोर्ट पेश करते हुए संगठनों ने बताया कि गवाह कह चुके हैं कि भाजपा नेता मजलूम को कई बार जान से मारने की धमकी दे चुका था। उसने कई बार मजलूम को यह कहकर धमकाया था कि अगर उसने मवेशियों का व्यापर करना नहीं छोड़ा तो वो उसे मार देगा।

 

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