क्या उत्तर प्रदेश में संघ से जुडें लोगों के लिए कोई फास्ट ट्रैक थाना या कोर्ट खुला हुआ है? अगर ऐसा नहीं है तो संघ विचारक राकेश सिन्हा को दलित समझकर पकड़ने वाले SHO को 24 घंटे के अंदर कैसे सस्पेंड कर दिया गया।

दरअसल दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान नोएडा पुलिस ने संघ विचार राकेश सिन्हा को दलित एक्टिविस्ट समझकर पकड़ लिया था। राकेश सिन्हा ने ट्वीट कर अपने साथ हुए इस घटना की जानकारी दी। उन्होंने लिखा कि…

‘नोएडा पुलिस एक न्यूज चैनल के गेट से एसएचओ अनिल कुमार शाही के नेतृत्व में जबरन पुलिस गाड़ी में बैठाकर ले गई। उनका व्यवहार अशोभनीय था, धमकी भरा था। भीड़ जुटने पर 500 मीटर दूर जाकर छोड़ा। बाद में सफाई दी मुझे दलित ऐक्टिविस्ट समझ बैठे।’

राकेश सिन्हा ने अपने ट्वीट में पीएम मोदी और सीएम योगी को टैग किया था। जबकी नोएडा सेक्टर-20 स्थित पुलिस थाने के एसएचओ अनिल कुमार शाही ने सफाई देते हुए कहा भी था कि उनसे गलती हो गई थी। और इस गलती के लिए राकेश सिन्हा से माफी भी मांग ली थी।

अनिल कुमार शाई ने घटना के कुछ ही देर बाद सफाई देते हुए कहा था ‘हमारी टीमें हिंसा करने वाले लोगों का पीछा कर रही थीं। उन्हें वे (राकेश सिन्हा) फिल्म सिटी में दिखाई दिए और गलती से उन्हें प्रदर्शनकारी समझ लिया गया। जैसे ही हमें हमारी गलती का पता चला, हमने उन्हें तुरंत जाने दिया।’

माफी मांगने के बावजूद योगी सरकार ने अनिल कुमार शाही को सस्पेंड कर दिया गया है। काश योगी सरकार दलितों, महिलाओं, किसानों को भी इतनी तेजी से न्याया दे पाती।

योगी सरकार की इस कार्रवाई पर पत्रकार दिलीप खान लिखते हैं कि ‘राकेश सिन्हा को दलित समझकर पकड़ने वाला इंसपेक्टर निलंबित हुआ। योगी आदित्यनाथ के राज में न्याय की गति देखिए! राकेश सिन्हा ने कल जब ट्वीट किया तो उसमें “दलित एक्टिविस्ट” समझे जाने की पीड़ा छुपी थी। दलित एक्टिविस्ट होते तो चंद्रशेखर की तरह रासुका लग गया होता।’

सोच के देखिए अगर राकेश सिन्हा सच में दलित एक्टिविस्ट होते तो उनके साथ क्या होता, चंद्रशेखर की तरह रासुका लग जाता? क्या पुलिस किसी भी दलित को दलित होने की वजह से गिरफ़्तार कर सकती है? पीट सकती है? अपमानित कर सकती है?

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