रामनवमी के बाद से ही पश्चिम बंगाल सांप्रदायिक आग में जल रहा है। लेकिन इसी बीच राज्य से इंसानियत और आपसी सोहार्द को कायम रखने की एक बड़ी मिसाल सामने आई है। दंगों में अपने बेटे की मौत के बाद भी आसनसोल के इमाम शांति की अपील करते नज़र आए।

आसनसोल मस्जिद के इमाम मौलाना इम्दादुल रशीदी का 10वीं कक्षा में पढ़ने वाला बेटा सिब्तुल्ला रशीदी मंगलवार को गायब हो गया था। बताया जा रहा है कि सिब्तुल्ला को एक उग्र भीड़ ने उठा लिया था। बुधवार को पुलिस को उसकी लाश मिली। बहुत ज़्यादा पीटने से उसकी मौत हो गई।

सिब्तुल्ला की लाश मिलने के बाद इलाके में लोगों के बीच रोष था। सिब्तुल्ला की सुपुर्दे ख़ाक में भी हज़ारों लोग आए। लेकिन इमाम रशीदी के बर्ताव ने सब को चौंका दिया।

कब्रिस्तान में ही हज़ारों लोगों की भीड़ से इमाम ने कहा कि मुझे शांति चाहिए। मेरा बेटा चला गया। मैं नहीं चाहता कि और लोग भी अपने बच्चों को खोए।

उन्होंने कहा कि अगर किसी ने भी मेरे बेटे की मौत का बदला लेने के लिए कुछ किया तो मैं ये मस्जिद और ये शहर छोड़कर चला जाऊंगा। मैं 30 सालों से इमाम हूँ। शांति का सन्देश देना मेरा कर्तव्य है। मैं नहीं चाहता कि इस आग में अब और घर जलें।

आसनसोल के मेयर जीतेन्द्र तिवारी ने कहा कि ऐसी बाते उस व्यक्ति से सुनना जिसने इस सब के कारण अपना बेटा खोया है अनपेक्षित है। ये बंगाल के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण है। हमें उनपर गर्व है।

जीतेन्द्र ने बताया की उनका संदेश सुनकर लोग रोने लगे। मैं वहां मौजूद था। बच्चे की लाश मिलने के बाद युवाओं में गुस्सा था। लेकिन इमाम रशीदी की अपील से लोग शांत हो गए। अगर वो ऐसा नहीं करते तो ये इलाका भी साम्प्रदायिक चपेट में आ जाता।

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