गिरीश मालवीय

अचानक हजारो लाखों लोगों को ISRO पर प्रेम उमड़ आया और मोदी और इसरो प्रमुख की प्रायोजित मुलाकात में पीठ पर हाथ थपथपाते देख कर लोग जज्बाती हो गए।

भावनाओं को उभार देना और उसका जमकर फायदा उठाने में सत्ताधारी दल का कोई जवाब नही है साफ साफ नजर आ रहा था कि वह एक वेल प्लांड मीटिंग थी जहां चारो ओर से कैमरे अपना काम कर रहे थे।

पता नही यह देश कब समझेगा कि वह सिर्फ वही देखता है जो उसे दिखाया जाता है हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स ने यह बात बहुत सोच समझ कर बोली थी कि किसी संदिग्ध ओर झूठी बात को इतनी बार दोहराओ कि वो सच बन जाए और सब उस पर यक़ीन करने लगें। यह बात हिटलर के जमाने मे भी, जब सिर्फ रेडियो और समाचार पत्र ही मीडिया के माध्यम हुआ करते थे सच थी ओर आज भी जब प्रचार के सेकड़ो माध्यम हो गए हैं तब भी उतनी ही सच है बल्कि अब इसकी तीव्रता ओर मारक हो गयी है।

चांद पर झंडा लहराने वाले ISRO के वैज्ञानिकों के वेतन में कटौती, बोले- मोदी सरकार के इस फैसले से दुखी हैं

बहरहाल अब सब इसरो के वैज्ञानिकों के साथ खड़े हुए हैं लेकिन कुछ दिन पहले इसरो के वैज्ञानिकों के साथ कोई नही खड़ा हुआ जब वहाँ सरकार ने वैज्ञानिकों की तनख्वाह घटा दी थी।

मोदीं सरकार ने Chandrayaan-2 की लॉन्चिंग से ठीक पहले ISRO वैज्ञानिकों की तनख्वाह में कटौती कर दी थी. इसरो के वैज्ञानिकों के संगठन स्पेस इंजीनियर्स एसोसिएशन (SEA) ने इसरो के चेयरमैन डॉ. के. सिवन को पत्र लिखकर मांग की कि वे इसरो वैज्ञानिकों की तनख्वाह में कटौती करने वाले केंद्र सरकार के आदेश को रद्द करने में मदद करें. क्योंकि वैज्ञानिकों के पास तनख्वाह के अलावा कमाई का कोई अन्य जरिया नहीं है।

लेकिन कोई कुछ नही बोला, कोई तब भी कुछ नही बोला जब पिछले साल सरकार ने इसरो के निजीकरण करने की तरफ कदम बढ़ाने शुरू कर दिए।

पिछले साल इतिहास में पहली बार इसरो ने दो प्राइवेट कंपनियों और एक सार्वजनिक उपक्रम के साथ 27 सेटेलाइट बनाने का करार किया। बीते तीन दशकों में इसरो के लिए यह पहला मौका है जब उसने नेविगशन सैटेलाइट बनाने का मौका निजी क्षेत्र को दिया था।

प्राइवेट सेक्टर को इस प्रकार से 27 सैटलाइट्स बनाने का काम सौंपने पर इसरो की सैटलाइट बनाने वाली अहमदाबाद स्थित इकाई, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के डायरेक्टर डॉ. तपन मिश्रा बहुत नाराज हुए।

तपन मिश्रा वह व्यक्ति थे जिनका सिवन के बाद इसरो का अगला प्रमुख बनाया जाना लगभग तय था लेकिन उनके द्वारा निजीकरण का विरोध किये जाने से उनका डिमोशन कर दिया गया उनको पद से हटाकर इसरो का सलाहकार बना दिया गया।

इसरो के चेयरपर्सन के. सिवन ने एक आदेश जारी कर कहा, ‘तपन मिश्रा को सभी जिम्मेदारियों से मुक्त किया जाता है। उन्हें इसरो मुख्यालय में वरिष्ठ सलाहकार नियुक्त किया जाता है और वो चेयरमैन को रिपोर्ट करेंगे।

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तब भी यह बात उछली थी कि तपन मिश्रा जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिक को सिवन के साथ मतभेदों के चलते हटाया गया है….. अब आप समझ सकते हैं कि K सिवन के साथ साहेब की इतनी सहानुभूति क्यो उमड़ रही है ओर वे किसके इशारे पर इस उच्च पद पर आसीन है।

तपन मिश्रा को इस तरह से हटाए जाने को लेकर देश के कई शीर्ष संस्थानों के वैज्ञानिकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र भेजकर इस मामले में दखल देने की अपील की थी लेकिन कुछ भी नही हुआ।

सबसे बड़ी बात तो यह थी कि इन सेटेलाइट को बनाने के लिए जिस निजी कम्पनी को चुना गया था उस अल्फा डिज़ाइन का नाम पनामा पेपर्स में शामिल हैं यह कम्पनी रक्षा उपकरणों की आपूर्ति करने वाली कम्पनी है और बताया जाता है कि अडानी समूह से भी इस कम्पनी का गहरा नाता हैं अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज उस इतालवी डिफेंस फर्म इलेटट्रॉनिका की मुख्य भारतीय साझेदार भी है, जिसका नाम भारत में कथित तौर पर कमीशन खिलाने के लिए ‘पनामा पेपर्स’ में सामने आया है।

तो यह सब चल रहा है पिछले दो तीन सालो से इसरो के अंदर लेकिन मजाल है जो ऐसी बातों पर मीडिया की आवाज निकल जाए ओर यह सब सच्चाई आपके सामने रख दे। मीडिया आपको सिर्फ वही बताएगा जो सत्ताधारी दल के एजेंडे को सूट करता है और यदि आप अपनी आंखें ओर कान खुले नही रखेंगे तो ऐसे ही बेवकूफ बनते रहेंगे।

  • ( ये लेख गिरीश मालवीय की फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है )

6 COMMENTS

  1. तुम भी तो देश का मूड देखकर अपने पॉलिटिकल आका के लिए रोटी सेंक रहे हो। जितने भी तुमने मुद्दे उठाए उनको उठाने का यह प्लेटफॉर्म तुम्हारी प्रतिबद्धता कहां है इसको सिद्ध करने के लिए काफी है।

  2. भारत देश में बेवकूफ बनाने वालों की कमी नहीं है जहां लाखों में वेतन होता है वहां थोड़ी कटौती देश के लिए कर दी जाए तो बुद्धिजीवी कवि बोलते नहीं यह तो हमारे मूर्ख देश के नेता ही है जो अपना वेतन बढ़ाने में रहते हैं ऊपर की कमाई अलग तभी तो गरीबों के लिए लड़ने वाला नेता कुछ ही समय में खुद अमीर बन जाता है

  3. सैलरी के अलावा का क्या मतलब है? सभी को सैलरी मिलती है।किसी को कम किसी को ज्यादा।पूरे देश में एक समान सैलरी नहीं मिलती।

  4. Adrniye girish ji.salari km kr dene se desh ke baigya nik apna kartvy nhi chhod denge.aap jaise log hi bhatka kr danga fsad krate hai.ise to achha pak sainik hai jo apnasalary km le rhe hai.

  5. तुम्हारे पोस्ट से एक बात तो साफ़ समझ आती है की तुम्हारे मुँह में किसकी गोटिया हैं।
    खैर चूसो और प्रसन्न रहो।
    जय हिन्द
    जय श्री राम
    जय माँ भारती।

  6. पत्रकार होने का मतलब हर जगह फुटानी मारना नहीं होता है मान्यवर! मेरे अपने परिवार में दो वैज्ञानिक हुवे हैं। विश्व स्तर पे वैज्ञानिक सहयोग भारत का बहुत कम था। जबकि बजटीय खर्च आर्थिक हैसियत को देखते हुवे बहुत ज्यादा अभी भी है। ज्यादातर वैज्ञानिक संस्थान आंतरिक राजनीतिक, भ्रष्टाचार के शिकार रहे हैं लगभग हमेशा से चाहे वो इसरो, barc, npl, ncl, cimap, bsip हो या कोई अन्य। इसलिए नए ग्रांट रोकना और result oriented work force बनाना ये भी आवश्यक होता है। जो भी मोदी सरकार ने किया था वो एक प्रशासनिक कदम था। बिना समग्र ज्ञान के पेज स्याही गिरा के न रँगे!

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