आज से लगभग एक साल पहले उत्तर प्रदेश की जनता ने बीजेपी को सत्ता सौंपी थी। सत्ता के संरक्षण का काम मिला गोरखनाथ मठ के मठाधीश योगी आदित्यनाथ को। आज एक साल बाद योगी से सीएम बने आदित्यनाथ की कार्यशैली को यूपी की जनता ने नकार दिया है।

जिस गोरखपुर लोकसभा सीट से योगी आदित्यनाथ लगातार पांच बार सांसद बने, आज उस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा हो चुका है। योगी 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में गोरखपुर से सांसद चुने गए। गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ का अलग ही जलवा है लेकिन आज के चुनावी परिणाम ने इस जलवा को धता बता दिया है।

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर की सीट खाली हुई थी, उपचुनाव हुए। इस सीट पर योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा दाव पर लगी थी, योगी ने अपना गढ़ बचाने के लिए गोरखपुर में 16 रैलियां भी की लेकिन फिर भी परिणाम समाजवादी पार्टी के पक्ष आया है।

ऐसा क्यों हुआ?

ऐसा कैसे हो गया कि जिस पार्टी को एक साल पहले जनता ने प्रचंड बहुमत दिया था, वो आज अपनी दो सीट नहीं बचा पायी? क्या यूपी की जनता योगी सरकार से नाराज है? अगर हां, तो नाराजगी के कारण क्या हैं?

मासूमों की मौत-

सांप्रदायिकता, जहरीले भाषण, कथित धर्म और छद्म राष्ट्रवाद मासूम बच्चों की मौत की पूर्ति नहीं कर सकता। कोई मां-बाप इस बात को कैसे भूल सकता है कि उनका नन्हा सा बच्चा बिना ऑक्सिजन के तड़प-तड़प के मर गया था।

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 10 अगस्त की रात लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो गई थी जो 13 अगस्त की अल सुबह बहाल हो पायी। इस दौरान 10, 11 और 12 अगस्त को क्रमशः 23, 11 व 12 बच्चों की की मौत हुई। तीन दिनों में 46 मासूम बच्चों की मौत के बाद देश भर में हड़कंप मच गया था।

घटना के बाद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने मीडिया से बात करते हुए एक ऐसी बात बोल दी जो किसी के गले नहीं उतरा। सिद्धार्थ ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा था कि पिछले कई सालों से अगस्त के महीने में बच्चे गोरखपुर के इस हॉस्पिटल में दिमागी बुखार की चपेट में आकर मर जाते हैं।

उन्होंने बकायदा आंकड़े भी पेश किए। उन्होंने सीधे तौर पर तो नहीं कहा लेकिन उनकी बात का अर्थ ये ही था कि हर साल अगस्त में बच्चे मरते ही है इसमें ऑक्सिजन की कमी सच नहीं है।

इतना ही नहीं अगस्त और सितंबर के बाद अक्टूबर में भी ये सिलसिला जारी रहा। अक्टूबर माह के 15 दिनों में ही 231 बच्चों की मौत गई थी। लेकिन योगी सरकार इसपर ध्यान न देते हुए राज्य में हिंदू-मुस्लिम, गाय-गोशाला, बीफ, मंदिर, ईद पर चर्चा करती रही। गोरखपुर की हार एक बड़ा कारण ये भी है।

फर्जी एनकाउंटर-

अपनी असफलता छिपाने के लिए योगी सरकार ने एक घिनौना प्रयोग किया। इस प्रयोग ने लोकतंत्र और संविधान को छलनी कर दिया। आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाने, अपने नाम के साथ एनकाउंटर स्पेशलिस्ट का टैग लगाने और सरकार की कमियों को छिपाने के लिए यूपी पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर शुरू कर दिया।

योगी सरकार के दौरान यूपी पुलिस ने अपराधियों पर काबू पाने के लिए 1150 के करीब एनकाउंटर कर डाले हैं, जिसमें 35 से ज्यादा अपराधियों की मौत हो गई। हाल ही में हुए नोएडा के जिम संचालक जितेंद्र यादव जैसे कई फर्जी एनकाउंटर को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकार चुप्पी साधे हुए है। जितेंद्र यादव फर्जी एनकाउंटर पर एनएचआरसी ने यूपी सरकार और यूपी पुलिस को नोटिस भेज सफाई मांगी है।

वही गत 3 अक्टूबर को ग्रेटर नोएडा में गैंगस्टर सुमित गुर्जर के एनकाउंटर पर भी सरकार को इसी तरह का नोटिस जारी किया गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 12 साल में एनएचआरसी में फर्जी एनकाउंटर को लेकर जितनी शिकायतें दर्ज हुए हैं, उसमें से एक तिहाई केवल यूपी की हैं।

पिछले एक साल की विफलता-

योगी आदित्यनाथ को सत्ता हासिल किए एक साल हो चुके हैं। इस एक साल में क्या-क्या हुआ?

अल्पसंख्यकों की रोजी रोजी बंद करने के लिए बुचड़खाने यहा तक की मुर्गे और मटन की दूकानों को भी बंद किया गया।

गले में भगवा गमछा डाले मॉब लिंचिंग करना आम बात हो गई।

दलितों पर हमला हर रोज की बात हो गई। कई जातीय और धार्मिक दंगे हुए।

चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात के तर्ज पर ‘एंटी रोमियो स्क्वाड’ का गठन हुआ जो विलुप्त हो गई। जितने दिन रही उतने दिन प्रेमी जोड़ों को परेशान किया, हिंसा की, जीना दुश्वार किया।

पिछले एक सालों में महिलाओं से छेड़छाड़, बलात्कार, हिंसा की खबरों से उत्तर प्रदेश का अखबार भरा हुआ है।

कानून व्यवस्था भगवा गमछे वालों के सामने घुटनों पर है।

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