बैंक घोटालों की संख्या बढ़ती चली जा रही है और इसके साथ ही मोदी सरकार के कार्यकाल में घोटालेबाजों के देश छोड़कर भाग जाने की संख्या भी। एक अन्य बैंक घोटाला सामने आया है जो अभी तक ख़बरों से बाहर था। नीरव मोदी और विजय माल्या के बाद जो नया बैंक घोटालेबाज़ भगोड़ा सामने आया है वो है जतिन मेहता।

मेहता की कहानी भी नीरव मोदी जैसी ही है। महता भी एक हीरा कारोबारी है। वो गुजरात से अपना कारोबार चलाता था। मेहता पर 6500 हज़ार करोड़ के बैंक घोटाले का आरोप है। इस घोटाले में भी सबसे ज़्यादा नुकसान 1700 करोड़ रुपये पंजाब नेशनल बैंक का ही हुआ है।

नीरव मोदी की तरह ही मेहता भी देश छोड़कर भाग गया है। मेहता भी मोदी की तरह विदेशी नागरिक है। वो कैरिबियन आइलैंड का नागरिक है। जिसके साथ भारत का अपराधियों को वापस लाने के लिए कोई समझौता भी नहीं है।

नीरव मोदी की तरह ही जतिन मेहता की रिश्तेदारी मोदी सरकार के करीबी माने जाने वाले उद्योगपति के साथ है। नीरव मोदी के छोटे भाई की शादी मुकेश अम्बानी की भांजी से हुई है और जतिन मेहता के बेटे सूरज की शादी गौतम अडानी की भांजी से हुई है।

क्या है मामला

जतिन मेहता का हीरा कारोबार ज़्यादातर दुबई से था। वो अक्सर अपनी कंपनी विन्सम डायमंड्स, फॉरएवर प्रिशियस ज्वेलरी, सूरज डायमंड्स के फेवर में बैंकों से लेटर और अंडरस्टैंडिंग (LOUs) लेता था। LOUs एक गेरेंटी होती है जिसे कोई भी बैंक किसी कंपनी के समर्थन में किसी अंतर्राष्ट्रीय बैंक को देता है। अगर वो कंपनी पैसा नहीं चुका पाई तो LOU देने वाला बैंक उसकी जगह अंतर्राष्ट्रीय बैंक को पैसा देगा। इसके आधार पर अंतर्राष्ट्रीय बैंक कंपनी को लोन देते हैं।

बैंकों का विन्सम डायमंड्स पर 4,366 करोड़ रुपये का बकाया है। 1932 करोड़ का बकाया फॉरएवर प्रिशियास ज्वेलरी पर और 283 करोड़ रुपये का सूरज डायमंड्स पर।

मेहता ने 2012 में खुद को दिवालिया घोषित कर दिया। उसने कहा कि वो दुबई की जिन कंपनियों के साथ बिज़नस कर रहा था उन्हें एक बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। इसलिए उन कंपनियों ने मेहता का पैसा नहीं चुकाया है। इस सब के बाद मेहता 2016 में देश छोड़कर भाग गया।

इस सब के बीच 2015 में मेंहता ने दुबई में अपनी बिज़नस पार्टनर कंपनियों पर ये आरोप लगाया कि उन्होंने उसका पैसा वापस नहीं करा है। मामला जब आगे बड़ा तो जांच में पता चला कि दुबई की जिन कंपनियों के साथ मेहता अपना बिज़नस दिखा रहा था और नुकसान की बात कर रहा था उन कंपनियों में मेहता की भी हिस्सेदारी है। उसी के बाद मेहता देश छोड़कर भाग गया।

उनमें से कुछ कम्पनियाँ तो केवल कागज़ातों पर थी। मतलब ये मामला ऐसे था कि बैंकों से नकली कारोबार के आधार पर लोन लेना। फिर कारोबार को दिवालिया घोषित कर देना और बैंकों के लोन का पैसा खुद खा लेना।

सरकार पर सवाल ये उठता है कि 2012 से ही इस बात पर चर्चा हो रही थी कि मेहता की कहानी के पीछे कोई षड्यन्त्र है। उसके बावजूद सरकारी एजंसियों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। फिर कैसे 2016 में मेहता को भाग जाने दिया गया।

मेहता के भाग जाने के बाद तीन बैंकों के कहने पर 2017 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की। लेकिन मामले में कोई गिरफ़्तारी नहीं की गई है।

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