मिर्ज़ापुर के प्राथमिक विद्यालय में मिड-डे मील के नाम पर बच्चों को नमक-रोटी खिलाने के मामले को उजागर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल के खिलाफ सोमवार को एफआईआर दर्ज कर ली गई। पत्रकार के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई को लेकर ज़िलाधिकारी अनुराग पटेल ने बेतुकी सफाई दी है। उन्होंने कहा कि पत्रकार को अपने समाचार पत्र के लिए फोटो लेनी चाहिए थी वीडियो नहीं बनाना था।

दरअसल डीएम ने बयान देते हुए कहा कि ‘जनसंदेश’ अखबार के पत्रकार पवन जायसवाल ने प्रिंट मीडिया के बजाए ख़बरिया चैनल की तरह वीडियो वायरल किया था। पत्रकार को अपने समाचार पत्र में फोटो सहित समाचार छापना चाहिए था, जबकि उन्होंने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया, इससे लगता मुझे मामला संदिग्ध लगा और मैंने इसकी रिपोर्ट लिखवा दी।

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इस मामले पर पत्रकार कादम्बिनी शर्मा ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा- और इतनी फ़ज़ीहत होने के बाद भी इनके सामान्य ज्ञान में कोई इज़ाफ़ा नहीं। वैसे आज पत्रकार पवन जायसवाल जैसे ‘संदिग्धों’ की ज़रूरत हर जगह है।

अब सवाल ये उठता है कि क्या प्रिंट मीडिया के पत्रकार को ये अधिकार नहीं है कि वह सोशल मीडिया पर अपनी रिपोर्ट के वीडियो को पोस्ट कर सके? क्या प्रिंट मीडिया के पत्रकार द्वारा सोशल मीडिया पर अपनी रिपोर्ट शेयर करना जुर्म है? अगर ये जुर्म नहीं है तो फिर किस आधार पर पत्रकार के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई?

बता दें कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के प्राइमरी स्कूल में बच्चों का नमक-रोटी खाते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। इस वीडियो के वायरल होने के बाद मिर्जापुर प्रशासन हरकत में आया और स्कूल प्रबंधन को सस्पेंड कर दिया था। गरीब बच्चों के साथ ज्यादती का वीडियो बनाने वाले पत्रकार पवन जायसवाल पर योगी की पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर दी थी।

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