म्यांमार की नेता आंग सान सू की को भले ही नोबेल शांति पुरस्कार मिला हो लेकिन उनके शांति के पैमाने बेहद ही सांप्रदायिक और शर्मनाक प्रतीत होते हैं।

जब उन्हीं के देश म्यांमार में लाखों रोहिंग्या को मारा जा रहा है तो ना सिर्फ चुप्पी साधी हुई हैं बल्कि इस अमानवीय कृत्य को मुंह सहमति दे रही हैं।

इसकी वजह से शांति का चोला ओढ़े ये नेता दुनिया के सामने बेनकाब हुई हैं और कनाडा ने घोषणा किया कि सरकार द्वारा दी गई मानद नागरिकता को वापस ले लिया।

‘सू की’ की उपाधि छीन लेने की घोषणा बहुत पहले हो चुकी थी लेकिन अब इससे संबंधित प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित करके उनको दी गई मानद नागरिकता वापस ले ली गई है। साथ ही कहा गया कि लाखों रोहिंग्या मुसलमान जब संकट के दौर में गुजर रहे थे तो ‘सू की’ की चुप्पी हैरान करने वाली थी।

दरअसल, 2007 में उन्हें कनाडा की संसद की मानद नागरिकता दी गई थी।

‘द वायर’ में छपी खबर के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि मैं म्यांमार के रखाइन प्रांत में सेना के बर्बर अभियान की वजह से सात लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुस्लिमों देश छोड़कर भागना पड़ा और वह पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरणार्थी बनकर शिविरों में रह रहे हैं।

आखिर ऐसे नरसंहार की निंदा से इनकार करने वाला शांति का सिंबल कैसे हो सकता है!

‘सू की’ को 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और उन्हें यह सम्मान सैन्य शासन वाले वाले म्यांमार में लोकतंत्र स्थापित करने के लिए उनके किए गए प्रयासों के लिए दिया गया था।

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