एक तरफ डॉलर के मुकाबले रुपया गिर रहा है तो दूसरी तरफ़ पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू रही हैं। रुपया डॉलर के मुकाबले 72 के स्तर को पार कर गया है तो पेट्रोल की कीमत शतक से कुछ कदम ही दूर रह गई है।

डॉलर के मुकाबले रुपये में कमज़ोरी और पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में बढ़ोतरी से घर के बजट में 10 से 15 फीसदी तक का इज़ाफा हुआ है। पेट्रोलियम पदार्थों खासकर डीज़ल के मूल्य में बढ़ोतरी का असर दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर दिखना शुरू हो गया है।

इसकी वजह से आलू-प्याज़ और हरी सब्जियों की कीमत में 30 फीसदी तक का इज़ाफा हो चुका है, वहीं डेली यूज़ की चीजें भी महंगी हो गई हैं।

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इस महीने सात दिनों में ही डीजल 1.65 रुपये प्रति लीटर, जबकि पेट्रोल 1.31 रुपये प्रति लीटर महंगा हुआ है। इसकी वजह से माल ढुलाई पर खर्च चार से पांच फीसदी बढ़ गया है, जिससे आलू-प्याज से लेकर तमाम फल-सब्जियों का ढुलाई खर्च तो बढ़ा ही है, उद्योग जगत की परिवहन लागत भी बढ़ी है।

क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी का कहना है कि डीज़ल की कीमतों में इतनी बढ़ोतरी होने का असर एक साथ पूरे देश पर पड़ा है, क्योंकि माल परिवहन के लिए डीज़ल ही मुख्य ईंधन है।

इससे अब एफएमसीजी कंपनियां भी इस साल की तीसरी तिमाही में दाम बढ़ाने पर विवश होंगी, क्योंकि इससे पहले भी ढुलाई खर्च बढ़ने की वजह से उन्होंने दाम नहीं बढ़ाया था। ऐसे में कम से कम पांच फीसदी दाम बढ़ सकता है।

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रुपए में गिरावट और तेल के दामों में इज़ाफ़े के कारण बढ़ी महंगाई से जहां जनता बेहाल है, वहीं सरकार इस महंगाई की आग का कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अस्थिरता बता रही है। सरकार ने अपने हाथ खड़े करते हुए साफ़ कह दिया है कि वो इसपर लगाम नहीं कस सकती।

केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरता स्तर पेट्रोल-डीजल के दामों की बढ़ोतरी का एक कारण है और डॉलर का रुपए के मुकाबले मज़बूत होना अंतर्राष्ट्रीय कारणों से है। इन समस्याओं का समाधान भारत के हाथों में नहीं है।

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केंद्रीय मंत्री के इसी बयान को लेकर जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज़ कसा है। उन्होंने ट्वीटर के ज़रिए कहा, “लोग कह रहे हैं कि रुपया, पेट्रोल और डीजल “विकास के पापा” के हाथ से निकल गए हैं। अब कहीं विकास के पापा अपना झोला लेकर बाहर न निकल जाएँ”।

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