लोकतंत्र के लचीलेपन का कई दुरुपयोग हुए हैं। उन्हीं दुरुपयोग में से एक का परिणाम है कि हमे अपराधियों को गणमान्य नेता कहना पड़ता है। उन लोगों का सत्तासीन होना जिन्होंने कभी न कही संविधान को जख्मी किया हो, कहां तक सही है? मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथपत्र देकर ये बताया कि कितने सांसद और विधायक दागी हैं।

इस शपथपत्र में मोदी सरकार ने बताया है की देश में कुल 1700 सांसद और विधायक दागी हैं यानी जिनके खिलाफ अभी भी करीब 3,045 आपराधिक मामले लंबित हैं।

इसमें सभी राज्यों में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है जिसके बाद दूसरे स्थान पर तमिलनाडु और तीसरे पर बिहार उसके बाद पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से आने वाले सांसद और विधायकों के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज हैं।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में मोदी सरकार से अपराधिक मामले में लिप्त सांसदों और विधायकों की लिस्ट मांगी थी। जिसके जवाब में मोदी सरकार ने देते हुए बताया है की पिछले 3 सालों में ही करीब 1765 विधायकों व सांसदों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।

शपथपत्र में 1765 सांसदों व विधायकों के खिलाफ 3816 आपराधिक जिनमे सिर्फ 125 मामलों का निपटारा हो पाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में हुए लोकसभा चुनावों के बाद कहा था कि जिस भी जनता के प्रतिनिधि पर अपराधिक मामले दर्ज है उसका निपटारा एक साल के अंदर हो जाना चाहिए। मगर जब इन मामलों में सिर्फ 771 केस है जिसका निपटारा हो पाया है वही अब भी 3045 मामले कोर्ट में लंबित हैं।

दागी नेताओं में यूपी नंबर वन
 

सुप्रीम कोर्ट को कानून मंत्रालय दुवारा दिए गए इस अकाड़े में उत्तर प्रदेश नंबर एक पायदान पर है जहाँ सांसदों और विधायकों पर करीब 539 मामले दर्ज है। वही केरल में 373 और तमिलनाडु बिहार और पश्चिम बंगाल को मिला ले तो करीब 3000 मामले अभी कोर्ट में चल रहे है। इस मामले में वकील और आरटीआई ऐक्टिविस्ट अश्विनी उपाध्याय जनहित याचिका डाली थी।

जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है। वही अश्विनी ने याचिका में ये भी कहा था कि जो सांसद और विधायक अपनी सजा काट रहे है उन्हें फ़ौरन चुनावी प्रक्रिया से दूर कर देना चाहिए। जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को आदेश दिया था की वो सही सही आकड़े पेश करे कोर्ट में जिसका जवाब खुद सरकार ने दिया है।

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