निजी स्कूलों में कितने बच्चें पढ़े इसकी कोई संख्या नहीं है। मगर उनमें अगर कोई गरीब का बच्चा पढ़े तो निजी स्कूल वालों को इस बात पर अप्पति है क्योकि उन गरीब बच्चों फीस देने वाला कोई नहीं। उत्तर प्रदेश में करीब 2 हज़ार स्कूलों ने सरकार को खुली चुनौती देते हुए कह रहा है कि जबतक बकाया फीस जमा नहीं होती तब तक आरटीई में बच्चों को दाखिला नहीं देंगें।
दरअसल शिक्षा के अधिकार नियम के तहत गरीब बच्चों की शिक्षा का खर्च केंद्र सरकार 65 प्रतिशत और 35 प्रतिशत राज्य सरकार मिलकर देती है। मगर उत्तर प्रदेश निजी स्कूलों की ये शिकायत है कि पिछले 2 साल से निजी स्कूलों में गरीब बच्चों का एडमिशन तो करा रहा है लेकिन उनकी फीस स्कूल को नहीं दी जा रही है।
निजी स्कूल अब अपनी मनमानी पर उतर आये है। वो अपना पुराना बकाया भी मांग रहे है और अगले साल के एडमिशन के लिए यानी की 2018-19 वाले सत्र के लिए वो एडवांस फीस मांग रही है। शिक्षा पाने के लिए प्रदेश में करीब 49 हज़ार गरीब बच्चे है जिनमें करीब 27620 छात्रों ने साल 2017 एडमिशन लिया था।
गरीब बच्चों का एडमिशन करवाना और उनकी फीस देने का जिम्मा शिक्षा विभाग है। जिसके तहत निजी स्कूलों को फीस दी जाती है। मगर इंडीपेंडेंट स्कूल्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के यूपी अध्यक्ष डॉ मधुसूदन दीक्षित की माने तो शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009 के तहत पिछले दो वर्षों से निजी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों की फीस प्रतिपूर्ति नहीं की गई है।
सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी पर सरकार प्रतिमाह 5 हजार रुपये खर्च करती है, जबकि इन स्कूलों की गुणवत्ता बेहद निम्न दर्जे की है, वहीं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के बावजूद निजी स्कूलों की फीस इससे कहीं कम है। इसलिए आरटीई के अनुसार, शासन को निजी स्कूलों को उनकी वास्तविक फीस के बराबर राशि की प्रतिपूर्ति करनी चाहिए।
उनका कहना है कि गरीब बच्चों को पढ़ाने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पढ़ता है। आज हाल ऐसे हो गए हैं कि निजी स्कूल अपने शिक्षकों को वेतन नहीं दे पा रहे हैं। बिजली बिल और स्टेशनरी आदि पर होने वाला खर्च भी नहीं निकाल पा रहे है।
सब पढ़े सब बढ़े और स्कूल चले हम का नारा अब सिर्फ सरकारी विज्ञापन तक ही सीमित रह गया है। निजी स्कूलों की मनमानी का मामला दिल्ली सरकार जैसे हल किया वैसा ही कुछ एक्शन और प्रदेशो में लेने की ज़रूरत है।
क्योकिं सिर्फ उत्तर प्रदेश ही अकेला ऐसा प्रदेश नहीं है जहाँ बकाया फीस के चलते गरीबों को शिक्षा देने से वंचित रखा जा रहा है। महाराष्ट्र में तीन हजार निजी स्कूलों ने बकाया फीस को पाए बिना आगामी सत्र में एक भी प्रवेश लेने से मना कर दिया है। अब यूपी के निजी स्कूल भी पिछला बकाया न मिलने और वाजिब फीस तय न होने तक एक भी दाखिला नहीं लेने का फैसला कर लिया है।