पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को कहा कि देश में अल्पसंख्यकों एवं दलितों के उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं और यदि इन पर लगाम नहीं लगाई गई तो लोकतंत्र को नुकसान हो सकता है।
प्रोफेसर ए.बी. रंगनेकर मेमोरियल लेक्चर को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा कि, हमारे लिए यह समय खुद से सवाल पूछने का है कि आज़ादी के 70 साल बाद क्या हम लोकतंत्र के साथ धैर्य खो रहे हैं।
सिंह ने कहा कि देश में राजनीतिक संवाद में खतरनाक और झूठ का एक मिश्रण उभर रहा है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक खतरा बन सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी देश की आज़ादी का मतलब सिर्फ वहां की सरकार की आज़ादी नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह लोगों की आज़ादी है जो बदले में सिर्फ इसके विशेषाधिकार प्राप्त एवं ताकतवर लोगों की आज़ादी नहीं है, बल्कि हर भारतीय की आज़ादी है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘आज़ादी का मतलब है सवाल करने की आज़ादी, नज़रिया पेश करने की आज़ादी, चाहे यह किसी अन्य के लिए कितना ही कष्टप्रद क्यों न हो। आज़ादी की एकमात्र असहजता दूसरों की आज़ादी होनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, किसी व्यक्ति या समूह की आज़ादी का इस्तेमाल दूसरे लोगों या समूहों की आज़ादी में बाधा डालने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।’’
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि आज़ादी के विचार के लिए ठोस प्रतिबद्धता के बगैर लोकतंत्र जीवित नहीं रहेगा। भीमराव अंबेडकर का ज़िक्र करते हुए सिंह ने कहा कि भारत की आज़ादी एवं स्वतंत्रता बरकरार रखने की प्रतिबद्धता पर फिर से ज़ोर देने की ज़रूरत है।