उत्तरप्रदेश में हाल ही में हुए इन्वेस्टमेंट समिट को योगी सरकार प्रदेश की काया पलटने वाले आयोजन के रूप में बता रही है। सरकार की तरफ से लगातार ये दावे किये जा रहे हैं कि इस समिट की बतौलत राज्य में लाखों करोड़ का निवेश होगा।

लेकिन अब जो खबरें आ रही हैं वो सरकार का दावे और इस समिट पर कई सवाल खड़े कर रही हैं।


इन्वेस्टमेंट समिट उद्योगपतियों के लिए रखा गया एक आयोजन होता है। इसमें दुनियाभर से लोग आते हैं और हज़ारों करोड़ रुपये निवेश करने के वादे होते हैं। लेकिन वादें करने और निभाने में फर्क है।

उत्तरप्रदेश में भी हाल ही में हुए इस समिट में 4 लाख 28 हज़ार करोड़ के निवेश के वादें हुए, लेकिन क्या ये ज़मीन पर उतर पाएँगे?

NDTV की एक खबर के मुताबिक इस समिट में वर्ल्डबेस्टेक नाम की कंपनी ने राज्य में 90 हज़ार करोड़ निवेश करने का वादा किया था। इसके लिए एक एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग) पर भी हस्ताक्षर किये गए थे यानि एक समझौता राज्य सरकार और कंपनी के बीच हुआ था।

लेकिन अब पता चला है कि इस कंपनी की अपनी वर्थ यानि हैसियत ही कुल 13 करोड़ है। इतनी कम हैसियत वाली कंपनी कैसे 90 हज़ार करोड़ का निवेश कर सकती है।

इस बात ने फिर से साबित कर दिया है कि इन्वेस्टमेंट समिट जनता को लुभाने के लिए झूठे वादों का पिटारा है। बता दें, कि इस समिट के लिए सरकार ने 65 करोड़ रुपये खर्च किये थे।

इससे सीधा सवाल राज्य सरकार पर उठता है। क्या इन्वेस्टमेंट समिट में कंपनियों के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर करने से पहले उनके बारे में जानकारी नहीं ली गई थी। राज्य सरकार इन्ही समझौतों के आधार पर बड़े-बड़े दावे कर रही है। लेकिन ये समझौते ही इतने खोखले नज़र आ रहे हैं।

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