भीमा कोरेगांव हिंसा केस में पांच एक्टिविस्टों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है। मगर एक बार फिर जस्टिस चंद्रचूड़ अपनी असहमति के कारण सुर्खियों में है।
इसबार उन्होंने कहा, इस मामले में जमकर मीडिया ट्रायल हो रहा है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘इसरो जासूसी केस’ का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें भूलना नहीं चाहिए कैसे वैज्ञानिक नंबी नारायण को गलत तरीके से फंसाया गया था।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपनी अलग राय रखते हुए कहा, भीमा कोरेगांव मामले का जमकर मीडिया ट्रायल हो रहा है। कैसे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाकर जांच को प्रभावित किया रहा है ये सब हम देख रहे है।
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि हमारे लिए ‘इसरो जासूसी केस’ एक रिमाइंडर की तरह है जिसे भूलना नहीं चाहिए।
पुणे पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि अधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर इतिहासकार रोमिला थापर की ओर से जारी जनहित याचिका जारी रखने योग्य है। उन्होंने कहा कि पुलिस की तरफ से की गई मीडिया मीटिंग जांच में भेदभाव का संदेह पैदा करती है।
जस्टिस चंद्रचूड ने एसआईटी नियुक्त करने को कहा की इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होनी चाहिए मगर फैसला माइनॉरिटी में होने के चलते यह केवल अकादमिक स्तर पर ही रह जायेगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने प्रेशर कुकर वाले बयान को दोहराते हुए कहा कि अलग राय लोकतंत्र के प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व की तरह है। इसे पुलिस की कड़ी ताकत से बांधा नहीं जा सकता।
क्या था ‘इसरो जासूसी केस’?
दरअसल साल 1994 पूर्व इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायणन को केरल पुलिस ने जासूसी के झूठे केस में फंसाया था। जासूसी मामले में नारायणन और एक अन्य को गिरफ्तार कर पुलिस ने दावा किया था कि उन्होंने कुछ गुप्त दस्तावेज पाकिस्तान को दिए थे।
जांच के बाद सीबीआई ने कहा था कि ये आरोप झूठे हैं। हालांकि फिर से जांच के आदेश दिए गए पर 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को रद्द कर दिया। इसके बाद नारायणन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचे, और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने 76 वर्षीय नारायणन को बड़ी राहत देते हुए नारायणन को 50 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया था।
Supreme Court says the activists arrested in #BhimaKoregaon case can move trial court for relief
— ANI (@ANI) September 28, 2018
बता दें कि भीमा कोरेगाँव हिंसा मामले पर पुणे पुलिस ने पांच लोगों को अर्बन नक्सल कहते हुए गिरफ़्तार किया था। जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच की मांग को ठुकराते हुए उनकी हिरासत चार हफ्ते और बढ़ा दी और कोर्ट ने पुणे पुलिस ने आगे जांच जारी रखने को कहा है।
Supreme Court extends house arrest for four weeks of five activists Varavara Rao, Arun Ferreira, Vernon Gonsalves, Sudha Bharadwaj and Gautam Navlakha in Bhima-Koregaon case. SC refuses to constitute SIT & asks Pune police to go ahead with the probe https://t.co/mnH3wryQNZ
— ANI (@ANI) September 28, 2018