साल 2019 का लोकसभा चुनाव सेना की बहादुरी पर लड़ा गया। बालाकोट पर की गई एयरस्ट्राइक से ही मुमकिन हो पाया कि देश में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर सवाल नहीं उठे। यहां तक कि राफेल डील को भी ऐसे ही दबा दिया गया था। अब ‘द टेलिग्राफ’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीमा पर खड़े जवानों को भत्ता देने में मोदी सरकार ने 3 लाख ‘केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल’ (CRPF) को कमी की है।

दरअसल केंद्र सरकार हर महीने सीआरपीएफ जवानों को 3000 हज़ार रुपये राशन भत्ता देती है। जोकि अब नहीं देने का ऐलान किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, आतंरिक संचार माध्यमों के तहत यह सूचित कर दिया गया है कि इस बार सैलरी के साथ ‘राशन भत्ता’ नहीं मिलेगा।

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यही नहीं रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि मोदी सरकार के पास देश के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र समेत अलग-अलग हिस्सों में तैनात जवानों को भत्ता देने के लिए पैसे की कमी है। सितंबर की सैलरी के साथ राशन भत्ता नहीं दिए जाने के पीछे गृहमंत्रालय ने इसका कारण भी बताया है। मंत्रालय का कहना है कि जुलाई, अगस्त और इस महीने में 800 करोड़ रुपये की किश्त जारी करनी बाकी है।

‘द टेलिग्राफ’ ने इस आदेश की एक प्रति होने का दावा किया है जोकि 13 सितंबर की है। इस मामले पर दिल्ली मुख्यलय मुख्यालय में सीआरपीएफ के एक अधिकारी का कहना है कि ये पहली बार है जब राशन भत्ता बंद कर दिया गया है। अधिकारी ने कहा कि पिछले ही हफ्ते हमने लंबित पड़े धन के बारे में बात की थी और तब उन्होंने लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था का हवाला दिया था।‘

रिपोर्ट में एक अधिकारी ने गुस्सा ज़ाहिर करते हुए कहा कि भत्ता को वापस लेने का फैसला प्रधानमंत्री के उस दावे के विपरीत है, जिसमें वह सुरक्षा बलों को लड़ाई के लिए फिट बनाने की बात करते हैं। याद हो इससे पहले सेना के जवानों को खुद से वर्दी जूता और अन्य सामान खुद से खरीदने के लिए कहा गया था।

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अब सवाल ये उठता है कि जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर और माओवादी बेल्ट में विद्रोह एवं आतंकवाद से लोहा लेने वालों को ही राशन नहीं दिया जायेगा तो किसे राशन दिया जायेगा। जिनकी दम पर मोदी सरकार को एक बार फिर केंद्र की सत्ता हासिल हुई। उन्हीं के साथ ऐसा करना कहाँ तक ठीक है?

क्योंकि सीआरपीएफ जो आतंकवाद और माओवाद प्रभावित इलाकों में तैनात रहता है। उन्हें लड़ने के लिए उन्हें फिट रखना बेहद जरूरी है और जवान कैंटीन से लेकर अन्य जगहों पर ‘राशन भत्ते’ का इस्तेमाल करते हैं। इस मामले के सामने आने से एक बात तो साफ़ है कि अर्थव्यवस्था को मजबूत भले बताया जा रहा है मगर जवानों को राशन ना देने की वजह सुस्त अर्थव्यवस्था का बहाना देना कहाँ तक ठीक है? क्या ये मोदी सरकार दोहरा रवैया नहीं है कि जवानों के दम पर चुनाव जीतने वाली पार्टी ही जवानों को राशन भत्ता देने से इनकार कर रही है।

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