मै आपको बताता हूं कि मैं क्यों बाकी पत्रकारों की तरह सरकारी भोंपू नहीं बन सकता.. क्यों सत्ता का भोंपू नहीं बन सकता. क्यों विश्वसनीयता की लड़ाई लड़ रहा हूं और मेरे साथ कुछ अन्या पत्रकार भी.
क्योकि मै चाहता हूं कि हमारी रोज़ी रोटी बनी रहे. पत्रकारिता एक ऐसा पेशा बना रहें जिसमे बिज़नेस हाऊसेस पैसा लगाते रहें. क्योकि अगर आपकी विश्वसनीयता खत्म हो गई तो कोई आपमे निवेष नहीं करेगा…चैनल्स की आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो जाएगी..क्योकि हमे कोई गमभीरता से नहीं लेगा. नौकरियों पर, वेतन पर असर पड़ने लगेगा. जब लोग आपमे निवेष नहीं करेंगे तो पैसे कहां से आएंगे ?
आप खुद बताईये पिछले चार सालों मे एक चाटुकार चैनल को छोड़ कर कितने नए चैनल सामने आए हैं. क्या आप जानते हैं कितने छोटे छोटे चैनल जो कई पत्रकारों के लिए रोजगार का जरिया होते थे, वो बंद हो गए हैं? क्योकि सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है कि नए समाचार चैनल सामने आएं. उनका काम कुछ खास चैनलों से चल रहा है .
युवा पत्रकार जिनकी आंखों से मोदी भक्ति का रस टपक रहा है या IIMC के वो छात्र जो एसआर कल्लूरी जैसे मानवाधिकार हनन करने वाले पुलिस अफसरों के साथ सेल्फी खिंचवाते हैं या माखनलाल यूनीवर्सिटी के वो छात्र जो कैम्पस मे गौशाला खुलने पर जश्न मनाते हैं , ये जान लें कि ये सरकार नए चैनल्स, खुली सोच वाले पत्रकारों के खिलाफ है . वो चाहती है पत्रकारों के ऐसी पीढी तैयार हो ..जो सत्ता के सामने घुटने टेके , सवाल न करें . जो सवाल करें , उसके लिए हालात बदतर किए जाएं।
इस सरकार का प्रचार और दबाव तंत्र बहुत गजब का है। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते।
कल्पना भी नहीं कर सकते किस किस तरह से प्रेशर पैदा किया जा सकता है । मगर ये हमेशा नहीं रहेगा। सब बंद होगा।क्योकि कुछ लोंगों की रीढ़ बाकी है अभी
और आज जब मैं ये सब लिख रहा हूं तो पत्रकारों के लिए, उनके भविष्य के लिए और इसकी आने वाली पौध के लिए लिख रहा हूं.
आप समझ रहें हैं ना? ना समझोगे तो वो दिन दूर नहीं जब अपनी पहचान तक छुपानी पड़ जाएगी आपको .
याद रखना ….