हाल ही में अपने रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों पर बात की। इस दौरान उन्होंने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने का भी वादा किया। ये वादा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 बजट पेश करते हुए भी किया था।
सवाल ये है कि क्या सच में सरकार किसानों की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक एमएसपी को बढ़ा कर दे रही है या फिर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की भाषा में कहे तो बस जुमलेबाज़ी हो रही है।
हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, एमएसपी बढ़ाने के मामले में मोदी सरकार का प्रदर्शन ख़राब रहा है। ये भी बताया गया है कि मोदी सरकार यूपीए सरकार के मुकाबले एमएसपी कम बढ़ा रही है।
क्रेडिट रेटिंग इंफॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड (सीआरआईएसआईएल) की रिपोर्ट के मुताबिक, यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2003 से 2013 तक एमएसपी में सालाना 19.3% की बढ़ोतरी हो रही थी। जबकि 2014 से 2017 के बीच एमएसपी में सालाना बढ़त 3.6% ही हुई है।
ये तब हो रहा है जब 2014 लोकसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने पर एमएसपी को लागत से 50% ज़्यादा बढ़ाकर देने का वादा किया था। 2014 में कुर्सी पर बैठने के बाद अब 2018 आ गया है लेकिन मोदी अपना वादा पूरा नहीं कर पाए हैं। एमएसपी बढ़ाने के बजाए उन्होंने इसमें हो रही सालाना बढ़ोतरी को पहले के मुकाबले 80% कम कर दिया है।
इस रिपोर्ट को बताते हुए जेएनयू के प्रोफेसर सी.पी चंद्रेसेखर फ्रंटलाइन पत्रिका में लिखते हैं कि सरकार ऐसा इसलिए कर रही है कि किसान बर्बाद हो जाए और इस क्षेत्र में भी प्राइवेट कंपनियों का बोलबाला हो जाए। ये सब तब हो रहा है जब इस देश की 50% से ज़्यादा आबादी जीवन यापन के लिए कृषि पर आश्रित है।