बकरवालों का उल्लेख कल्हण की राजतरंगिणी में 9वीं-10वीं शताब्दी की घुमंतू जाति के रूप में मिलता है जो सीमावर्ती क्षेत्रों में यायावर जीवन व्यतीत करते थे। यह पशुपालक जनजाति ऋतु बदलने के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करती है। इनका प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव है और ये शताब्दियों से उसी पर निर्भरता बनाये हुए है। जवाहरलाल नेहरू ने एक बार दक्षिण कश्मीर के पहलगांव में बकरवालों के एक झुंड को देखकर उन्हें ‘ जंगल का राजा ‘ के रूप में वर्णित किया था।

आज यह जंगल के राजा नहीं रह गए हैं। जंगल भी अब इनका नहीं रह गया है। गांव , शहर , सड़कें और मैदान कभी इनके थे ही नहीं। ये सब सरकार के हैं। सरकार फर्जी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर गाल बजाने वाले लोगों की है। वो चाहते हैं कि ये आदिवासी या तो समुद्र में चले जाएं या हमारे अधीन रह कर हमारा हुक्म तामील करें। उन्हें इन आदिवासियों के धर्म , संस्कृति और जीवनशैली से नफरत है।

उनकी धर्म और सभ्यता की समझ कहती है कि ऐसे आदिवासियों को सही राह पर लाने या उन्हें सबक सिखाने के लिए उनके साथ कुछ भी किया जा सकता है। वो चाहे तो उनकी हत्या कर सकते हैं , उनकी महिलाओं और बच्चों का बलात्कार कर सकते हैं , उनके हाथ पैर काट सकते हैं , उन्हें जैसे चाहे वैसे प्रताड़ित कर सकते हैं। धर्मभीरु और सभ्य लोगों के लिए यह सब जायज है। इसमें किसी को कुछ भी बुरा और गलत नहीं लग सकता। उनकी सभ्यता की समझ और धर्म का नज़रिया सब जायज़ देखने और समझने की ही प्रेरणा देता है।

आसिफा के मामले में भी यही हुआ है। बकरवाल जनजाति को सभ्य और धर्मभीरु लोगों ने सबक सिखा दिया है। उन्हें समस्या थी कि वो उनके इलाके में रहने लगे थे , वहां घूम रहे थे। इतना ही नहीं वो दूसरे धर्म के भी थे। इसलिए उनको खदेड़ना और उनको सबक सिखाना जरूरी था। इसीलिए आसिफा पर बच्ची होने के कारण कोई रियायत नहीं बरती गई। पिता और बेटों ने मिलकर उसका बलात्कार किया। जनता की रक्षा करने वाला पुलिस का अधिकारी भी बलात्कार के लिए आमंत्रित था। इन सभी की नज़र में यह घिनौना और वहशी कृत्य नहीं था बल्कि यह उनके धर्म और सभ्यता की रक्षा थी। उनकी कुंठा शांत होने से यह रक्षा भलीभांति हो सकी है।

इसीलिए धर्म और सभ्यता के रक्षक इन बलात्कारियों के पक्ष में खड़े हो रहे हैं। उन्हें इसमें न तो कुछ गलत लग रहा है न ही उन्हें किसी तरह की शर्म है। ये रक्षक भी बलात्कारियों जैसे ही हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इन्हें अब तक ऐसा करने का मौका नहीं मिला है। अगर मौका मिला तो यह भी धर्म और सभ्यता की स्थापना के लिए स्त्रियों की योनि क्षत-विक्षत करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

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