जातिवाद खत्म हो चुका, अब समाज कोई भेदभाव नहीं है, आरक्षण खत्म कर देना चाहिए… ये कुछ वाक्य हैं जो कुछ साल पहले जातीय दमन को ढ़कने के लिए लाया गया था। अब सवाल उठता है कि देश भर में कई महापुरूषों की मूर्तियां लगी हैं लेकिन सबसे ज्यादा अंबेडकर की मूर्तियों को ही तोड़ा जाता है, क्यों?

और अंबेडकर की मूर्ति को तोड़ने वाला अधिकतर किसी कथित उंची जाति का ही क्यों होता है? जब भी अंबेडकर की मुर्ति को तोड़ा जाता है बवाल होता है, FIR होती और मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है, क्यों?

आज तक कितने ऐसे लोगों पर कार्रवाई हुई है जिन्होंने अंबेडकर की मूर्ति को तोड़ा है? मूर्ति तोड़ने को लेकर लगातार होते विरोधों के बावजूद ऐसी घटनाओं में कोई कमी क्यों नहीं हुई?

दो मार्च यानी गत शुक्रवार के दिन यूपी के रामपुर कारखाना थाना क्षेत्र के पकड़ी बुजुर्ग गांव में होली की सुबह कुछ सामंतियों ने पार्क में लगी अंबेडकर की प्रतिमा को तोड़ दिया।

इस घटना को मीडिया में लिखा गया कि होली में हुड़दंगियों ने तोड़ी अंबेडकर की मुर्ति। जब भी कोई हुड़दंग होता है तो अंबेडकर की ही मुर्ति को निशाना क्यों बनाया जाता है?

स्थानीय लोगों के विरोध के बाद शनिवार को इस मामले में आठ लोगों के विरुद्ध रामपुर कारखाना पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया। लेकिन किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई।

इस बात से आक्रोशित ग्रामीणों ने रविवार की दोपहर में देवरिया-महुआनी चौराहा स्थित पगरा में बांस-बल्ली लगा सड़क जाम कर दिया।

जाम की सूचना पाकर पुलिस मौके पर पहुंची और ग्रामीणों को हटाकर आवागमन सुचारु कराने की कोशिश करने लगी। इसी दौरान पुलिस व ग्रामीणों पर लाठी भी चलाई। इतना ही नहीं पुलिस ने बसपा नेता सहित चार लोगों को हिरासत में ले लिया।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ ग्रामीणों का आरोप है कि रामपुर कारखाना एसओ राय साहब यादव की मिलीभगत से आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हो रही है।

बता दें कि बाबा साहेब अंबेडकर की जिस मुर्ति को तोड़ा गया था उसे ग्रामीणों ने दोबारा स्थापित कर दिया है। लेकिन पुलिस का रवैया अब भी समांतियों के पक्ष में ही है।

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