इतिहासकार रोमिला थापर से जेएनयू प्रशासन के बायोडेटा मांगने पर विवाद हो गया है। विश्वविद्यालय में लम्बे समय से प्रोफेसर इमेरिटस के तौर पर पढ़ा रहीं रोमिला थापर से बायोडेटा मांगने पर छात्रों, शिक्षकों ने विरोध किया है। थापर 1970 से जेएनयू में पढ़ा रही हैं। सेवामुक्त होने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन और यूजीसी की अनुमति मिलने के बाद वो अबतक जेएनयू से जुड़ी रही हैं।

वहीं रोमिला थापर ने जेएनयू प्रशासन के इस फैसले को अपमानित करने वाला फैसला बताया है। जबकि विश्वविद्यालय का कहना है कि उसने तय नियमों के तहत ही थापर से सीवी मांगा है।

रोमिला थापर देश की प्रख्यात इतिहासकार हैं, उनकी दर्जनों किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। थापर का प्राचीन इतिहास के क्षेत्र में भारत के लिए अहम् योगदान है। वो विश्वविद्यालय से प्रोफेसर इमेरिटस के तौर पर 1993 से जुड़ी हुई हैं। इसके लिए विश्वविद्यालय थापर को पैसों का भुगतान नहीं करता है। सीवी मांगने के विरोध में जेएनयू के क्षिक्षक संघ और छात्र संघ ने भारी विरोध किया है।

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कांग्रेस प्रवक्ता पंखुड़ी पाठक ने इतिहासकार रोमिला थापर का समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री पर सवाल उठाया है। पंखुड़ी ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि, “रोमिला थापर अपने पूरे खानदान की डिग्री दिखा देंगी। तुम बस मोदी जी की डिग्री दिखा दो। ठीक है भक्तों?”

इस मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि नियमों के मुताबिक ये जरुरी है कि वह उन सभी को पत्र लिखे जो 75 साल की उम्र पार कर चुके हैं। ताकि उनकी उपलब्धता और विश्वविद्यालय के साथ उनके संबंध को जारी रखने की उनकी इच्छा का पता चल सके। गौरतलब है कि इमेरिटस प्रोफेसर का पद आजीवन के लिए होता है।

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बता दें कि प्रोफेसर इमेरिटस को विश्वविद्यालय रिटायर्ड प्रोफेसर को मेंटर के तौर पर नियुक्त करता है। इसके तहत विश्वविद्यालय प्रोफेसर इमेरिटस को अपने यहां केबिन, स्टेशनरी और विभाग को दिशा देने के लिए नियुक्त करता है। यह एक मानद पद है जो अपने क्षेत्र में निपुण और काबिल प्रोफेसर को मिलता है।

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