16 दिसंबर 2012 की वो दर्दनाक घटना जिसने पूरे देश और सिस्टम को झकझोर कर रख दिया था। उस रात एक चलती बस में पांच बालिग और एक नाबालिग दरिंदे ने 23 साल की निर्भया के साथ जो हैवानियत की, उसके बाद पूरा देश सड़क पर उतर गया। बच्चे बूढ़े, जवान, महिला, पूरुष सब आंदोलन के लिए उतर गए। मीडिया एकजुट होकर निर्भया के लिए इंसाफ की मांग करने लगी।

उस वक्त किसी ने भी इस मामले को जाति, धर्म, राष्ट्रवाद से जोड़न की हिम्मत नहीं की। मंगलवार 18 दिसम्बर 2012 को ही इस मामले की गूंज संसद में सुनाई पड़ने लगी थी। जहां आक्रोशित सांसदों ने बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड की मांग की थी। तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने संसद को आश्वासन दिलाया था कि राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाए जाएंगे।

लेकिन आज क्या हो रहा है? देश एक साथ दो नावालिग लड़कियों के साथ हुए बलात्कार पर आंसु बहा रहा है। एक आठ साल की बच्ची के साथ लगातार आठ दिनों तक गैंगरेप कर उसकी हत्या कर दी जाती है। और कुछ लोग गैंगरेप के आरोपियों को बचाने के लिए धर्म और राष्ट्रवाद की दुहाई देने लगते हैं। आरोपियों पक्ष में रैली और तिरंगा यात्रा निकाली जाती है।

आखिर ऐसा क्या हो गया है कि अब देश की जनता बड़े से बड़े अपराध के विरोध में भी एकजुट नहीं हो पा रही है? क्या हमारे समाज को सत्ताधारियों ने धर्म, जाति और कथित राष्ट्रवाद के नाम पर तोड़ दिया है? क्या मीडिया सत्ताधारियों के सामने घूटने टेक चुकी है?

समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता पंखुड़ी पाठक ने ट्वीट किया है कि ‘2012- भारत की एक बेटी के लिए हर जाति, धर्म, समुदाय के लोग सड़कों पर उतर गए और क़ानून बदलवा दिया। 2018 – भारत की एक बेटी के ‘बलात्कारी’ के समर्थन में ‘धर्म’ को ढाल बना लोग सड़क पर उतर गए और बाक़ी चुप्पी साधे बैठ गए। ये देश की दशा और दिशा के बारे में क्या बताता है?’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here