केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर अपने बयानों से एक बार फिर चर्चा में है। जावड़ेकर ने एक कार्यक्रम में कहा कि शिक्षण संस्थान मदद मांगने के लिए कटोरा लेकर सरकार के पास न आएं। हो सके वो अपने पूर्व छात्रों से मदद लें, बजाय इसके वो सरकार के पास कटोरा लेकर आते रहते है।

इस मामले पर जावड़ेकर की आलोचना शुरू हुई तो उन्होंने अपने बयान पर माफ़ी मांगते हुए कहा कि उनके बयान का गलत मतलब निकाला गया है। उन्होंने कहा कि दो दिन पहले पुणे के स्कूल के कार्यक्रम में दिए एक बयान को लेकर गलतफहमी हो गई थी।

शिक्षा पर होने वाले सरकारी खर्च को लेकर मेरे बयान की गलत व्याख्या की गई मेरा ये कहना नहीं था कि सरकार शिक्षा पर खर्च नहीं करेगी और केवल पूर्व छात्र करेंगें।

जावड़ेकर ने कहा कि बयान देते वक़्त मुझे एहसास हुआ कि कटोरा लेकर ना आएं शब्द का इस्तेमाल करना गलत था और इसलिए मैं उस बयान को वापस ले रहा हूँ। नेताओं की ऐसे ही उन्हें सत्ता से बाहर रास्ता दिखाते है।

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ऐसे में मंत्री जी का ये बयान उन्हें मुश्किल में डाल सकता है क्योंकि मोदी सरकार में मंत्रियों के ऐसे ही बयानों से सरकार की किरकिरी होती रही है।

बता दें कि आँकड़ों के अनुसार जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है तबसे वो शिक्षा का बजट घटा रही है।

2014-15 में शिक्षा का बजट एक लाख 10 हज़ार 351 करोड़ रुपये था।

2015-16 में ये 96 हज़ार 649.76 करोड़ रुपये हो गया। 2016-17 चार हज़ार करोड़ और घटाकर बजट 92,666.65 करोड़ कर दिया गया। अब 2017-18 79,685.95 करोड़ रह गया है।

देश में आज भी 74% लोग ही साक्षर हैं मतलब जो अपना नाम लिख सके। उच्च शिक्षा की बात करें तो केवल केवल 8% लोग ही ग्रेजुएट हैं।

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