संविधान निर्माता डॉ बी.आर.अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने वन्दे मातरम् को लेकर एक बयान दिया है। मीडिया प्रकाश अंबेडकर के इस बयान को विवादित बता रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारिप बहुजन महासंघ के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने कहा है कि ‘जो लोग वंदे मातरम गाते हैं वो राष्ट्र विरोधी से कम नहीं हैं’
महाराष्ट्र के परभनी में प्रकाश अंबेडकर ने कहा कि जब आधिकारिक राष्ट्रगान मौजूद है तो किसी दूसरे की क्या जरूरत है। अगर मैं जन गण मन गाउंगा तो मैं एंटी इंडिया हो जाउंगा और अगर वंदे मातरम् गाउंगा तो क्या मैं सच्चा भारतीय बन जाउंगा? वंदे मातरम् न गाने पर देश विरोधी का प्रमाण पत्र देने वाले ये कौन लोग हैं? मैं उन लोगों पर एंटी-इंडिया होने का आरोप लगाता हूं जो वंदे मातरम् गाते हैं।
If I sing Jana Gana Mana then I am anti-India & if I sing Vande Matram then I am a true Indian? Who are you to give these certificates? I allege that those who sing Vande Mataram are anti-India: Prakash Ambedkar, Bharipa Bahujan Mahasangh. (22.10.2018) pic.twitter.com/SVHp8YKf9X
— ANI (@ANI) October 23, 2018
प्रकाश अंबेडकर के इस बयान को बीजेपी पर निशाना समझा जा रहा है। इस बयान के कई और भी राजनीतिक मायने हैं। दरअसल प्रकाश अंबेडकर की पार्टी भरिप-बहुजन महासंघ और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम में गठबंधन हो गया है।
इस गठबंधन को बीजेपी के खिलाफ दलित-मुस्लिम एकता की तरह पेश किया जा रहा है। और ये तो सभी जानते हैं कि वन्दे मातरम् और मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों में पूराना विवाद है।
मुस्लिम सुमदाय का एक बड़ा वर्ग वन्दे मातरम् नहीं गाना चाहता है। ऐसे में प्रकाश प्रकाश अंबेडकर वन्दे मातरम् पर अपनी राय क्लियर कर के मुस्लिम वोटरों और गठबंधन का विश्वास जीतना चाहते हैं।
‘वन्दे मातरम्’ विवाद क्या है?
आज़ादी से पहले जब राष्ट्रगान के चयन की बात आयी तो ‘जन गण मन’ और ‘वन्दे मातरम्’ में से किसी एक को चुनना था।
मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग लगातार वन्दे मातरम् का विरोध कर रहे थे। मुसलमानों की आपत्ति इस बात से थी कि वंदे मातरम् में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है। और इस्लाम किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने को मना करता है।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय लिए हिंदू धर्म राष्ट्रवाद का पर्याय था। वन्दे मातरम् बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के जिस उपन्यास ‘आनन्द मठ’ से लिया गया है उस ‘आनन्द मठ’ को कुछ मुसलमान मुस्लिम विरोधी मानते हैं। उनका कहना है कि इसमें मुसलमानों को विदेशी और देशद्रोही बताया गया है।
इन सभी विवादों के मद्देनजर हुए 1937 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति बनायी गई। इस समिति में मौलाना अबुल कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव भी शामिल थे। समिति ने पाया की वन्दे मातरम् के शुरूआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गये हैं।
लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है। इसलिए यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा।
वन्दे मातरम् के अलावा मोहम्मद इकबाल के ‘सारे जहां से अच्छा’ को भी राष्ट्रगीत के लिए चुना गया। राष्ट्रगान के रूप में रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन को यथावत रहने दिया गया। हालांकि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान दोनों को मिला समान दर्जा प्राप्त है।
लेकिन क्या प्रकाश प्रकाश अंबेडकर का बयान विवादित है?
इस सवाल का जवाब सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में है। अगस्त 1986 में सुप्रीम कोर्ट में एक केस चला था जो ‘बिजोय एम्मानुएल वर्सेस केरल’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। विवाद ये था कि कुछ विद्यार्थियों को स्कूल ने इसलिए निकाल दिया था क्योंकि उन्होंने राष्ट्रगान (जन-गण-मन) नहीं गाया था।
ये विद्यार्थियों स्कूल में राष्ट्रगान के वक्त इसके सम्मान में खड़े तो होते थे लेकिन लेकिन अपनी धार्मिक मान्यताओं का हवाला देकर उसे गाने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की और फैसला फैसला स्टूडेंट्स के हक में सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान का सम्मान करता है पर उसे गाता नहीं है, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है।
अतः राष्ट्रगान न गाने की वजह से किसी को दण्डित या प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। चूंकि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान को समान दर्जा प्राप्त है इसलिए किसी के द्वार वंदे मातरम् का न गाना अपराध या विवादित नहीं है।