देशभर में कर्ज माफी के लिए किसान सड़कों पर हैं लेकिन उनके लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं। दूसरी तरफ खुद मोदी सरकार इस खबर की पुष्टि कर रही है कि उसने पिछले 3 साल में पूंजीपतियों के 2 लाख 41 हजार करोड़ के लोन राइट ऑफ कर दिए।
अरबों रुपए डकार जाने वाले पूंजीपतियों का हित साधने की बात जिस तरह से इस सरकार ने बेशर्मी से स्वीकारा है उसके बाद ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ के सारे उदाहरण छोटे पड़ जाते हैं। एक ऐसी सरकार जिसमें सिर्फ बड़े-बड़े पूंजीपतियों के हितों का ही ख्याल रखा जा रहा है और उनके लिए देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा दांव पर लगाया जा रहा है, उस देश के किसानों-नौजवानों के लिए अब भविष्य कितना अंधकार भरा होगा।
आज राज्यसभा में वित्त राज्य मंत्री ने इस बात को स्वीकार किया है कि पिछले 3 सालों में 2 लाख 41 करोड़ का लोन राइट ऑफ किया गया है।
राज्यसभा सांसद आर बनर्जी ने सवाल किया ‘क्या यह सच है सितंबर 2017 तक सरकारी बैंकों ने क्रोनी कार्पोरेट के 2.4 लाख करोड़ रुपए ठंडे बस्ते में डाल दिए यानी लों राईट ऑफ कर दिए ? अगर ऐसा है तो इसका विवरण उपलब्ध कराया जाए।’
इसका जवाब देते हुए वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने बताया- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़े के अनुसार, सरकारी बैंकों ने 2014 से लेकर सितंबर 2017 तक 2 लाख 41 हजार करोड़ रुपए राइट ऑफ कर दिए हैं।
सरकार द्वारा इस तरह की स्वीकारोक्ति महज एक सवाल का जवाब नहीं था बल्कि इस देश के करोड़ों भारतीयों के मुंह पर तमाचा था जिनकी बुनियादी सुविधाओं में कटौती करते हुए, महंगाई बढ़ाते हुए अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद दी गई थी।
मोदी सरकार ने कुछ उद्योगपतियों के लिए देश का लाखों करोड़ों का खजाना दाँव पर लगा दिया है।
कहने को तो राईट ऑफ किया गया लोन कर्जमाफी नहीं है लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है कि राइट ऑफ किया जाए और फिर वो लोन वापस लौट आए।
अब साफ़ तौर पर यह मान लेना चाहिए कि मोदी सरकार ने 3 साल में पूंजीपतियों को लाखों करोड़ की राहत दी है भले ही उन हजारों लाखों किसानों के लिए कुछ भी ना किया हो जो अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरते हैं और उनके पैरों में छाले पड़ जाते हैं।