साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा दिया था। लेकिन तब उन्होंने इसके नियम और शर्तें नहीं बतायी थी। अब इसका खुलासा हो रहा है कि सबका साथ सबका विकास के अंतर्गत पिछड़ों को ब्राह्मणों के पैर धुलने होंगे और उस गंदे पानी को पीना होगा।

अगर ऐसा नहीं है तो पीएम मोदी ने अपने उस सांसद पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं कि जिसने ऐसे धृणित कृत का प्रदर्शन किया। झारखंड के गोड्डा से सांसद हैं निशिकांत दुबे। जाति से ब्राह्मण और पार्टी से भाजपा।

गोड्डा जिले में कलाली से कनभारा के बीच कझिया नदी पर 21 करोड़ की लागत से हाई लेवल पुल बन रहा है। इसी पुल का शिलान्यास करने पहुंचे थे सांसद निशिकांत दुबे।

शिलान्यास समारोह के मंच पर भाषण चल रहा था। इसी बीच गोड्डा प्रखंड के पूर्व महामंत्री पवन कुमार साह मंच पर पहुंचे और सांसद के पैर धोने लगे। सांसद बड़े ही आराम से पैर धुलवाने भी लगे। लेकिन इसके बाद जो हुआ वो भारतीय समाज में सदियों से पल रही जाति व्यवस्था के क्रूर इतिहास को उजार कर दिया।

पवन कुमार साह ने ब्राह्मण सांसद निशिकांत दुबे का पैर जिस थाली में धोया था, उस थाली के पानी को पी लिया। ये घृणित और अमानविय घटना हजारों लोगों के सामने मंच से हुई।

पवन कुमार साह झारखंड में ओबीसी वर्ग से आते है। सांसद ने जिस घृणित और अमानविय कृत को प्रमोट किया जो समतामूलक समाज के लिए कलंक है।

जिस गोड्डा में एक फ़ीसदी भी ब्राह्मण नहीं हैं वहां से निशिकांत दुबे सांसद बने बैठे हैं। यही लोकतंत्र है। लेकिन जो निशिकांत दुबे ने किया वो लोकतंत्र पर कलंक है। अगर पवन शाह ने स्वेच्छा से ही पैर धोना चाहते थे तो क्या निशिकांत दुबे को मना नहीं करना चाहिए था?

पैर धुले गंदे पानी को पीना किस सभ्य समाज में होता है? सांसद जी ने जिस संविधान की शपथ ली है, क्या वो संविधान ऐसे अमानविय कार्यों का अंत नहीं चाहता?

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने इस घटना पर संविधान का हवाला देते हुए लिखा है ”संविधान के अनुच्छेद 51 (ए) के मुताबिक हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करे। संसद सदस्य और बीजेपी नेता निशिकांत ठाकुर ने संविधान की शपथ ली है। अगर वे इस बात का प्रचार कर रहे हैं कि ओबीसी को ब्राह्मण के पैर धोकर पीना चाहिए तो वे संविधान की शपथ भंग कर रहे हैं। वे ऐसा कर रहे हैं।”

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