भारतीय बैंकों के हज़ारों करोड़ रुपए लेकर भागे शराब कारोबारी विजय माल्या के हालिया बयान के बाद मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ती नज़र आ रही हैं। सरकार पर आरोप लग रहा है कि वो बहुत पहले से इसकी तैयारी कर रही थी।
विपक्ष ने सरकार पर जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर इस काम को अंजाम देने का आरोप लगाया है। अगर पूरे घटनाक्रम को देखा जाए तो ऐसा लगता है कि जैसे माल्या को भगाने की तैयारी पहले से चल रही थी।
बुधवार को लंदन कोर्ट के बाहर जब मीडिया ने उनसे पूछा कि वो मार्च 2016, में भारत छोड़ने से पहले किस से मिले थे तो माल्या ने जवाब दिया “मैं वित्त मंत्री से मिला था। और मैंने इस बारे में स्तिथि स्पष्ट कर दी थी कि मैं कैसे बैंकों के साथ कर्ज का मामला हल करना चाहता हूँ।”
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बता दें, कि विजय माल्या पर भारतीय बैंकों का 9,990 करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है जिसे बिना चुकाए वो भारत छोड़कर इंग्लैंड आ गए थे।
दरअसल, कर्ज ना चुकाने के कारण माल्या और बैंकों के बीच पहले से गर्मागर्मी थी। ये मामला अदालत में भी था। कहीं माल्या भाग ना जाए इसलिए सीबीआई ने माल्या के लिए ‘लुक आउट’ नोटिस जारी करा हुआ था जिसके मुताबिक, अगर वो देश छोड़ने की कोशिश करे तो उसे हिरासत में ले लिया जाए।

लेकिन नवम्बर 2015, में इस नोटिस को बदलकर हिरासत की जगह माल्या के देश छोड़ने पर सिर्फ जांच एजेंसी को सूचना देने के लिए कह दिया गया। अब सवाल उठ रहा है कि ऐसा क्यों किया गया?
जब इस बात का पूरा अंदेशा था कि माल्या देश छोड़कर भाग सकता है तो क्यों उसके लिए जारी नोटिस में नियम बदल दिए गए।
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और अब जो बात सामने आई है कि माल्या ने देश छोड़ने से पहले वित्त मंत्री को बताया उसके बावजूद उन्होंने सीबीआई को ये सूचना देनी ज़रूरी नहीं समझी।
तो क्या ये पूरे खेल पहले से रचा गया था जिसके लिए पहले माल्या के निकलने का रास्ता सीबीआई द्वारा आसान कराया गया और बाद में खुद वित्त मंत्री ने माल्या को निकलने इजाज़त दे दी!