राफेल मामले में सामने आ रहे खुलासों के बाद मोदी सरकार बुरी तरह घिरती जा रही है। सरकार इस मामले में अपने बचाव की कोशिश कर रही है लेकिन जिस तरह के खुलासे सामने आ रहे हैं उससे सरकार पर लगे आरोप तो मजबूत तो होते ही हैं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर इस सरकार की लापरवाही भी नज़र आती है।

मोदी सरकार की राफेल विमान खरीदने की नई डील में देश की सरकारी कंपनी ‘हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (एचएएल) की जगह अनिल अंबानी की जिस ‘रिलायंस डिफेंस लिमिटेड’ को ठेका मिला है उस कंपनी के पास समझौते के समय यानि ठेका मिलने के समय जहाज़ बनाने का लाइसेंस ही नहीं था।

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राफेल विमान के नए समझौते का ऐलान 10 अप्रैल 2015, को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ़्रांस से किया। नए समझौते में ‘हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड’ (एचएएल) की जगह ‘रिलायंस डिफेंस लिमिटेड’ को विमान के पुर्जें बनाने का ठेका मिला। जबकि रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के पास इस समय विमान निर्माण का लाइसेंस ही नहीं था। ये लाइसेंस उसे 10 महीने बाद मिला।

रक्षा मंत्रालय के औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के मुताबिक, 21 नवम्बर 2015, को रिलायंस की 11 इकाईयों को उसने सशर्त मंज़ूरी दी। 22 फरवरी 2016, को इनमें से कुछ कंपनियों को रक्षा क्षेत्र में निर्माण के लिए लाइसेंस दिया गया। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड भी उनमें से ही एक थी।

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यानि जिस कंपनी के पास विमान बनाने का अनुभव तो छोड़िये लाइसेंस तक नहीं था उसे देश की वायुसेना के लिए महत्वपूर्ण विमान बनाने का ठेका दे दिया गया है। क्या ये राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं है?

क्या है विवाद

राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है।

बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल विमानों को 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।

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इनमें से 18 विमान तैयार स्थिति में मिलने थे और 108 को भारत की सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), फ्रांस की कंपनी ‘डसौल्ट’ के साथ मिलकर बनाती। अप्रैल 2015, में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी फ़्रांस यात्रा के दौरान इस डील को रद्द कर इसी जहाज़ को खरीदने के लिए में नई डील की।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नई डील में एक विमान की कीमत लगभग 1670 करोड़ रुपये होगी और केवल 36 विमान ही खरीदें जाएंगें।

क्योंकि 60 हज़ार करोड़ में 36 राफेल विमान खरीदे जा रहे हैं। नई डील में अब जहाज़ एचएएल की जगह उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी ‘रिलायंस डिफेंस लिमिटेड’ डसौल्ट के साथ मिलकर बनाएगी।

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जबकि अनिल अंबानी की कंपनी को विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है क्योंकि ये कंपनी राफेल समझौते के मात्र 12 दिन पहले बनी है। साथ ही टेक्नोलॉजी ट्रान्सफर भी नहीं होगा जबकि पिछली डील में टेक्नोलॉजी भी ट्रान्सफर की जा रही थी।

  • अदनान अली 

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