मोदी सरकार के राज में महिलाओं के हाथों से रोज़गार छीन रहा है। शिक्षित और शहरी महिलाएं भी बेरोज़गारी की मार झेल रही हैं। ये दावा हार्वर्ड की एक रिपोर्ट में किया गया है जिसका नाम है- “जेंडर इन्क्लूजन इन हायरिंग इन इंडिया”।

रशेल और लैला द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में लिखा है कि भारत में शहरी महिलाएं पुरुषों के मुकाबले दोगुना ज़्यादा बेरोज़गार हैं। देश में 8.7 प्रतिशत कामकाजी आयु वर्ग की शिक्षित महिलाएँ बेरोज़गार हैं। वहीं दूसरी तरफ उनकी तुलना में केवल 4 प्रतिशत पुरुष बेरोजगार हैं। ध्यान से देखें तो ये आंकड़ा दोगुना से ज़्यादा का है।

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जेंडर के कारण किया गया भेद-भाव, भारतीय संविधान में ग़ैरक़ानूनी है। फिर भी भारत में नौकरी देते समय महिलाओं के साथ भेद-भाव किया जाता है।

यही नहीं, रिपोर्ट का दावा है कि अगर श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी तो भारत का GDP 27% तक बढ़ सकता है।

भाजपा ने चुनाव के दौरान रोज़गार देने का वादा किया था। सरकार बनाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने विकास के बड़े-बड़े दावे भी किए। लेकिन तमाम रिपोर्टों की माने तो देश के लोगों को के पास नौकरियाँ नहीं हैं। अब तो ये भी साफ़ हो जाता है कि इसकी सबसे ज़्यादा मार महिलाओं पर पड़ी है।

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार बयान दिया था कि कि महिलाओं को सिर्फ घरेलू होना चाहिए, पुरुषों को ही कामकाजी होना चाहिए। अब लगता है बीजेपी सरकार इस मनुवादी विचार को लागू करने पर गंभीरता से कम कर रही है

8 महीने पुरानी CMIE रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2018 में 88 लाख महिलाओं ने अपनी नौकरी खो दी थी। यानी कि नई नौकरियाँ आने के बजाए पुरानी ही नौकरियाँ जा रही हैं। महिलाओं को लुभाने के लिए उज्ज्वला योजना जैसी स्कीम तो चलाई जाती है लेकिन उनके काम करने के लिए सही माहौल तैयार नहीं किया जा रहा है।

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