अभिनव यादव

साल 1992 का वो दौर जब प्रदेश में राम मंदिर को लेकर आन्दोलन उग्र हो चुका था। ठीक उसी वक़्त एक राजनीतिक दल उभरकर सामने आया। कारसेवकों और दंगाइयों ने प्रदेश में जमकर उत्पात मचाना शुरू किया। मगर इसी के ठीक बाद नफरत को अपने ही अंदाज़ में धोबी पछाड़ देने वाले मुलायम सिंह यादव जैसे शख्स ने पार्टी का गठन किया नाम था समाजवादी पार्टी।

आज 4 अक्टूबर है। इसी दिन ठीक 27 साल पहले मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया था। इन 27 वर्षों में उत्तर प्रदेश में ‘सपा’ ने चार बार सरकार बनाई और केंद्र की राजनीति के केंद्र में लगातार बनी रही है। इस 27 सालों में समाजवादी पार्टी ने चार बार सत्ता का स्वाद चखने के साथ-साथ कई उतार-चढ़ाव भरे दौर भी देखे हैं। सपा के पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश यादव अध्यक्ष बने हैं।

मुलायम सिंह का उस समय के दिग्गज नेताओं को लेकर मानना था, जिनके लिए वो काम कर रहे थे कि, “हम उन्हें भीड़ और पैसा जुटाकर देते हैं। फिर देवीलाल, चंद्रशेखर, वीपी सिंह आदि नेता हमें बताते हैं कि हमें क्या करना है, क्या बोलना है। इसीलिए हम अपना रास्ता खुद बनाएंगे।” इसी दौरान मुलायम ने अपनी नई पार्टी बनाने का जोखिम उठाया।

जिस समय मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया वो समय मंडल और मंदिर का दौर था। लेकिन सपा के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव ने कुछ ऐसे फैसले लिए जिसके दम पर आज सपा खड़ी है। जनता पार्टी से अलग होकर मुलायम से नई पार्टी बनाई थी। मुलायम का कहना था कि, वो पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की कांग्रेस के साथ बढ़ती नजदीकियों से परेशान थे, इसीलिए उन्होंने सपा बनाने का मन बनाया। लेकिन बाद में मुलायम ने कांग्रेस के समर्थन से यूपी में सरकार चलाई।

चार अक्टूबर 1992 को लखनऊ में मुलायम ने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की। चार और पांच नवंबर को उन्होंने हजरत महल पार्क में पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन किया। इस अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव को अध्यक्ष, जनेश्वर मिश्र उपाध्यक्ष, कपिल देव सिंह और आज़म खान पार्टी के महामंत्री बने और मोहन सिंह को पार्टी प्रवक्ता नियुक्त किया गया। बेनी प्रसाद वर्मा को भी पार्टी से जोड़ा गया।

समाजवादी पार्टी ने अपने गठन के बाद उस वक़्त जोर पकड़ा जब गठन के एक महीने बाद बाबरी मस्जिद कारसेवकों द्वारा गिरा दी गई। इस समय पूरा देश भाजपामय हो गया था। मुलायम और कांशीराम ने फैसला किया कि सपा-बसपा का गठबंधन किया जाए। इस गठबंधन के बाद यूपी में नया नारा बना- ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय सियाराम।’ इस नारे की बतौलत सपा-बसपा की गठबंधन की सरकार बनी और मुलायम यूपी के मुख्यमंत्री।

दावा है कि समाजवादी पार्टी स्वतंत्रता सेनानी और महान समाजवादी चिंतक डॉ राममनोहर लोहिया के विचारों को मानती है। लोहिया के विचार समाजवादी पार्टी के लिए मूलमंत्र हैं, जिसपर चलकर पार्टी समाज में गरीब, पिछड़े और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों के सामाजिक उत्थान का काम करती है।

पार्टी गठन के एक साल बाद ही समाजवादी पार्टी ने अपना पहला चुनाव 1993 में लड़ा। सपा को इस चुनाव में 109 सीटें मिलीं। मुलायम यूपी के सीएम बने।

1996 के आम चुनाव में मुलायम सिंह मैनपुरी से सांसद चुने गए और केंद्रीय रक्षा मंत्री बने। इस चुनाव में सपा 16 सांसदों के साथ लोकसभा पहुंची। 1998 में फिर चुनाव हुए और इस बार सपा को 19 सीटें मिलीं। इंद्र कुमार गुजराल की सरकार गिरने के बाद फिर से 1999 में आम चुनाव हुए और इस चुनाव में सपा को 26 सीटें मिलीं। इस समय तक समाजवादी पार्टी केंद्र की सत्ता में अपनी धमक जमा चुकी थी।

इसी तरह 2004 के आम चुनाव में सपा ने 36 सीटें जीतीं, 2009 में पार्टी के 23 सांसद थे। लेकिन सपा के लिए 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मुँह की खानी पड़ी और पार्टी को दोनों छुनावों में महज 5-5 सीटों ही जीत पाई।

2003 में सपा की एक बार फिर उत्तर प्रदेश में सरकार बनी। मुलायम सिंह यादव ने एक बार फिर यूपी की कमान संभाली। दिलचस्प बात यह है कि इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। मुलायम ने बीजेपी से डील की, जिससे बीजेपी ने सदन में विश्वास प्रस्ताव से वाक आउट किया।

2007 में सपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी। इसका फायदा बहुजन समाज पार्टी को मिला और इस विधानसभा चुनाव में बसपा 206 विधायकों के साथ यूपी की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और मायावती यूपी मुख्यमंत्री बनीं। ठीक यही सत्ता विरोधी लहर 2012 में बसपा के खिलाफ थी। 2012 का विधानसभा चुनाव सपा ने मुलायम सिंह यादव के साथ साथ अखिलेश यादव के नेतृत्व में लड़ा। इस चुनाव में अखिलेश यादव ने जमकर मेहनत की जिसका फायदा समाजवादी पार्टी को मिला।

चुनावी नतीजे आने के बाद सपा के पास 224 विधायक थे और सपा को पहली बार उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुमत मिल चुका था। मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश यादव को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया। अखिलेश ने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान यूपी को विकास की राजनीती को प्राथमिकता दी। इस दौरान अखिलेश ने लैपटॉप बांटने से लेकर कन्या विद्या धन योजना की स्कीमें लॉन्च कीं। यूपी के युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिया, एक्सप्रेसवे से लेकर मेट्रो की यूपी को सौगात दी।

इस बीच 2016 में मुलायम परिवार, पारिवारिक झंझटों में उलझ गया। मुलायम, अखिलेश, शिवपाल और रामगोपाल यादव ने तनातनी बढ़ गई। नतीजा ये हुआ कि 2017 विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी अंदरूनी रूप से टूट गई। इस बीच अखिलेश यादव को मुलायम ने सपा से 6 वर्षों के लिए निष्काषित कर दिया। वहीं सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर अखिलेश समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए।

लेकिन इस दौरान सपा जो टूटी वो फिर दुबारा उठ खड़ी नहीं हो पाई। 2017 का विधानसभा चुनाव सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा लेकिन जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में सपा को महज 47 सीटें ही मिलीं। इसके बाद अखिलेश यादव सपा को फिर से यूपी की सत्ता सौंपने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।

इसके बाद अखिलेश यादव के नेतृत्व पर तमाम सवाल उठने लगे। 2019 के लोकसभा चुनाव को उनके लिए एक बड़ी परीक्षा माना गया। अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनावों के पहले बसपा और रालोद से गठबंधन करके भाजपा के सामने महागठबंधन की बड़ी चुनौती पेश की। उनके इस प्रयोग के प्रभाव का आंकलन इस बात से किया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव का केंद्र उत्तर प्रदेश बन गया, मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस से ज्यादा लोगों का ध्यान नए बने महागठबंधन पर गया ।

हालाँकि नतीजे भाजपा के पक्ष में ही गए, महागठबंधन को मात्र 15 लोकसभा सीटों पर विजय मिली। मगर इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि अखिलेश यादव ने ही बीजेपी को उत्तर भारत में सबसे बड़ी चुनौती दी। यहाँ तक कि आखिरी नतीजे भी देखें तो पूरे हिंदी बेल्ट में NDA के खिलाफ बमुश्किल 20 नेताओं ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की जिसमें से 15 पर महागठबंधन के नेता ही जीते।

इस लोकसभा चुनाव में मजबूत मगर हारे हुए योध्दा के रूप में देखे जाने वाले अखिलेश यादव को अब साबित करना होगा कि वो 2022 तक भाजपा के हिन्दुत्ववादी राजनीति के लिए उतने ही बड़े चुनौती बन पाएंगे या नहीं जितनी बड़ी चुनौती मुलायम सिंह यादव 1992 में बने थे।

हालाँकि दोनों नेताओं के अनुभव अलग अलग हैं।27 साल के सफ़र में समाजवादी पार्टी के बैनर तले सपा के संस्थापक एवं संरक्षक मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और एक बार देश के रक्षा मंत्री बने। वहीं पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष अखिलेश यादव एक बार पूर्ण बहुमत की सरकार चला चुके हैं।

1 COMMENT

  1. 1992 मेंं मुलायम सिंह ने बीजेपी बेशक हराई लेकिन मोदी जी के नेतृत्व में 2022 मेंं बीजेपी को हराना असम्भव कारण जानने तो मैं एक आम आदमी हूँ इस पर कोई संदेह हो तो कोई भी जो डिवेट करना चाहते हैं तो मैं डिवेट करने के लिये तैयार हूँ CONTACT NUMBER
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