यूपी की योगी सरकार का एक और कारनामा सामने आया है। बांदा के कृषि विश्वविद्यालय में 15 प्रोफेसरों की नियुक्ति हुई है जिसमें 11 ठाकुर बिरादरी से हैं।

सीएम योगी आदित्यनाथ भी ठाकुर जाति से आते हैं और उनका असली नाम अजय सिंह बिष्ट है। इस भर्ती घोटाले के मुद्दे पर विपक्ष के साथ साथ भाजपा विधायक बृजेश प्रजापति ने भी मोरचा खोल दिया है।

समाजवादी पार्टी की सरकार के वक्त नियुक्तियों में एक ही जाति विशेष को तरजीह देने के मुद्दे को लेकर अक्सर भाजपा सीएम अखिलेश यादव को घेरती रहती है।

विपक्ष में रहने के दौरान सदन से लेकर सड़क तक भाजपा अखिलेश सरकार पर यादववाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर आंदोलन करती रहती थी। अब उसी जातिवाद के आरोपों के जंजाल में भाजपा सरकार फंस गई है।

मालूम हो कि यूपी के बांदा के कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 15 प्रोफेसरों की नियुक्तियां की थी। इनमें 11 पदों पर सामान्य वर्ग से आने वाले एक ही जाति ठाकुर समाज के प्रोफेसरों को नियुक्तियां की है।

बाकी के 04 पदों में से एक भूमिहार, 01 मराठी, 01 दलित और एक ओबीसी हैं। बांदा के ही तिंदवारी सीट से विधायक बृजेश प्रजापति ने पीएम मोदी से इस बात की शिकयत की है।

विधायक ने कहा कि जिस तरह से ये नियुक्तियां की गई है, वो सही नहीं है. आरक्षण रोस्टर का पालन नहीं किया गया है।संविधान हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देता है, क्या इस भर्ती में सभी को बराबरी का अधिकर मिला है?

वहीं समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मनोज सिंह काका ने इस मुद्दे पर योगी सरकार को घेरते हुए कहा है कि “15 में से 11 प्रोफेसर ठाकुर हैं मगर तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग चुप्पी साधे बैठा हुआ है। ये जातिवाद तो नहीं है ! उन्होंने कहा कि ये पहली बार नहीं हो रहा है।

जब 86 में से 56 एसडीएम यादव होने की अफवाह पर तमाम मीडिया अखिलेश यादव को दोषी करार दे देता है। आज वही मीडिया की जमात 61 जजों में से 52 सवर्ण होने पर चुप हो जाता है। जाति है की जाती नहीं।

यूपी में जिस तरह से योगी की जाति को तमाम नियुक्तियों में तरजीह दी जा रही है, उससे एक बार यूपी की राजनीति में बवाल मचना तय है।

सरकार के इस तरह के कारनामों की वजह से यूपी के ब्राह्मणों में योगी सरकार के प्रति नाराजगी का माहौल है और इसी वजह से भाजपा में आंतरिक घमासान तेज है।

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