सुप्रीम कोर्ट ने भले ही आधार को अब कानूनी मान्यता दे दी हो। मगर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के फैसले के बाद ऐसा लगता है पिक्चर अभी बाकी है, क्योंकि उन्होंने इस फैसले पर असहमति जताते हुए कहा है कि आधार अधिनियम पूर्ण रूप से असंवैधानिक है और आधार को मनी बिल के रूप में पास करना संविधान के साथ फ्रॉड है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पारित किये जाने पर सुप्रीम कोर्ट के जजों की राय बंटी हुई है। इस मामले पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि साधारण बिल को मनी बिल घोषित करना राज्यसभा को उसके अधिकारों से वंचित रखना है। वहीँ जस्टिस सीकरी ने कहा कि आधार को मनी बिल के तौर पर पास कराया जा सकता है।

आधार पर अपना फैसला सुनाते हुए चंद्रचूर्ण ने कहा संवैधानिक गारंटी को तकनीकी के उलटफेर से समझौता नहीं किया जा सकता है। जस्टिस चंद्रचूड़ के इस फैसले को बहुमत के विरोध में दिए गए फैसले(डिसेंटिंग जजमेंट) को क़ानूनी रूप नहीं दिया जाता है, इससे होगा ये की आने वाले समय में किसी बड़ी पीठ के पास इस मामले को भेजा जा सकता है।

आधार पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी साधारण बिल को मनी बिल घोषित करना राज्य सभा के अधिकारों का हनन है। लिहाजा आधार एक्ट को मनी बिल नहीं कहा जा सकता। जस्टिस चंद्रचूर्ण ने कहा कि आधार एक्ट संविधान के अनुच्छेद 110 (1) के अनुरूप नहीं है इसलिए यह एक्ट गैर-संवैधानिक है।

चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार अधिनियम का मकसद ठीक मगर इसमें सूचित सहमति और व्यक्तिगत अधिकार की रक्षा के लिए पूरी मजबूती सुरक्षा उपाय नहीं है। उन्होंने कहा कि आधार के जरिए आम जनता की निगरानी की संभावना है और जिसे तरीके से से तैयार किया गया है उसके डेटा बेस जानकारी लीक भी सकती है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मोबाइल हमारे वक़्त में जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है और इसे आधार से जोड़ दिया गया। ऐसा करने से निजता, स्वतंत्रता और स्वायत्तता को ख़तरा है। उन्होंने कहा कि वो मोबाइल से आधार नंबर को डीलिंक करने के पक्ष में हैं।

उन्होंने कहा कि यह मानकर चलना कि बैंक में खाता खोलने वाला हर व्यक्ति संभावित आतंकी या धांधली करने वाला है, यह अपने आप में क्रूरता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि डेटा के इकट्टा करने से नागरिकों की व्यक्तिगत प्रोफ़ाइलिंग का भी ख़तरा है। इसके ज़रिए किसी को भी निशाना बनाया जा सकता है, उनकी राजनीतिक विचार भी आसानी से पता लगाया जा सकता है।

जस्टिस चंद्रचूड़ ये भी कहा कि आधार कार्यक्रम सूचना की निजता, स्वनिर्णय और डेटा सुरक्षा का उल्लंघन करता है। यूआईडीएआई ने स्वीकार किया है कि वह महत्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्र और जमा करता है औ यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है।

बता दें कि आधार पर 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने करीब चार महीने के दौरान 38 दिन तक इन याचिकाओं पर सुनवाई की थी। कोर्ट ने ये फैसला 10 मई को अपने पास सुरक्षित कर दिया था।

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