Sc/St (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए बदवाल के विरोध में सोमवार को भारत बंद का ऐलान किया है। सोशल मीडिया पर सुबह से ही #BharatBandh ट्रेंड कर रहा है। पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में भी बंद का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। कई जगह ट्रेनें रोकी गई हैं। इसके अलावा कुछ शहरों में झड़प की घटनाएं भी सामने आई हैं।

केंद्र की मोदी सरकार पर आरोप हैं कि अदालत में इस मामले पर मजबूती से पक्ष नहीं रखा गया। हालांकि, सरकार अब इस मामले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल कर रही है।

पंजाब में बंद का व्यापक असर नजर आ रहा है। सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने वालों पर लगाम लगाने के मद्देनजर आज (रविवार) शाम पांच बजे से कल रात 11 बजे तक राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित रहेंगी।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम में कुछ बड़े बदलाव किए थे।

बता दें कि 30 जनवरी 1990 से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू कर दिया गया था। इस एक्ट के तहत उन तमाम लोगों पर कार्रवाई होती थी जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को अपमानित करते, सामाजिक बहिष्कार करते, मारपीट, आदि करते है।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, अगर किसी के खिलाफ एससी-एसटी ऐक्ट के तहत केस दर्ज होता है, तो पुलिस उस शख्स को तुरंत गिरफ्तार कर लेती है। इस केस में किसी तरह की अग्रिम जमानत नहीं मिलती है। गिरफ्तारी के बाद जमानत निचली अदालत नहीं दे सकती है, सिर्फ हाई कोर्ट ही जमानत दे सकती है। इसके अलावा किसी शख्स की गिरफ्तारी के 60 दिन के अंदर पुलिस को चार्जशीट दाखिल करनी होती है। चार्जशीट दाखिल होने के बाद पूरे मामले की सुनवाई विशेष अदालत में होती है, जो एससी-एसटी के मामलों की सुनवाई के लिए बनी होती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद…

इस एक्ट के तहत दायर मामलों में गिरफ्तारी जरूरी नहीं है। इस एक्ट के तहत दर्ज मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं था। नए फैसले के बाद अग्रिम जमानत लेना मुमकिन हो जाएगा।

मौजूदा कानून के तहत दर्ज मामलों में अगर आरोपी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी है, तो उसे नियुक्त करने वाले की सहमति के बिना उसकी गिरफ्तारी नहीं होगी।

अगर आरोपित व्यक्ति सरकारी कर्मचारी नहीं है, तो उसकी गिरफ्तारी के लिए एसएसपी स्तर के अधिकारी की मंजूरी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस धारा के तहत कोई शिकायत आने पर सात दिनों के अंदर डीएसपी द्वारा शुरुआती जांच कर ली जाए ताकि कोई निर्दोष व्यक्ति न फंसे।

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