पिछले दिनों पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जीडीपी गिरावट पर मोदी सरकार की नीतियों पर जमकर हमला बोला था। मनमोहन सिंह ने कहा था कि पिछली तिमाही में विकास दर का 5 फीसदी रहना इस बात का संकेत है कि देश एक भयावह मंदी की तरफ जा रहा है। जीडीपी गिरावट के लिए पूर्व प्रधानमंत्री ने नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों को ज़िम्मेदार ठहराया था।

इसके बाद मोदी सरकार की तरफ से बचाव करने उतरे केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेडकर ने मनमोहन सिंह के बयान को सीधे ख़ारिज कर दिया। भारत इस समय दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है इसलिए सरकार उनके (मनमोहन सिंह) विश्लेषण से इत्तेफाक नहीं रखती। अब इस बयान पर बीजेपी की साथी शिवसेना ने नसीहत दी है।

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शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया है ‘अर्थव्यवस्था सुस्त है। कश्मीर और आर्थिक मंदी दो अलग-अलग मुद्दे हैं। मनमोहन सिंह जैसे विद्वान व्यक्ति को आर्थिक मंदी को लेकर कोई राजनीति नहीं करनी चाहिए और अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए विशेषज्ञों की भूमिका होनी चाहिए। मनमोहन सिंह की सलाह का सुनना राष्ट्रीय हित का मसला है यानी इसमें राष्ट्रहित निहित है।

इसके अलावा शिवसेना ने कहा कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह 35 सालों तक देश की अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र से जुड़े रहे हैं इसलिए उनके पास अर्थव्यवस्था के बारे में बोलने का “अधिकार” है।

बता दें कि चालू वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट गिरकर ​महज 5 फीसदी रह गई है। जीडीपी किसी खास अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत है। भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही आधार पर होती है। ध्यान देने वाली बात ये है कि ये उत्पादन या सेवाएं देश के भीतर ही होनी चाहिए।

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इससे पहले ​मार्च तिमाही में जीडीपी 5.80 फीसदी रही थी। जबकि पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही विकास दर 8 फीसदी दर्ज की गई थी। मौजूदा जीडीपी बीते 25 तिमाहियों मतलब कि पिछले 6 साल से अधिक वक़्त में ये सबसे कम जीडीपी ग्राथ रेट है।

वहीं अगर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट और एग्रीकल्चर सेक्टर में सुस्ती ने देश की जीडीपी ग्रोथ को जोरदार झटका दिया है। इससे पहले, 2012-13 की अप्रैल-जून तिमाही में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 4.9 फीसदी के निचले स्तर दर्ज की गई थी।

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