देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्त वर्ष 2014-15 से सितंबर 2017 तक 2.41 लाख करोड़ रुपए की गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) को बट्टे खाते में डाला है। बट्टे खाते में डालने का मतलब है कि बैंकों ने अब इस राशि को वापस पाने की उम्मीद छोड़ दी है।

इस मुद्दे को लेकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने केंद्र की मोदी सरकार पर  निशाना साधा है। उन्होंने एक ट्वीट कर लिखा, “मोदी सरकार में कॉर्पोरेट का 2.41 लाख करोड़ का कर्ज़ बट्टा खाते में डाला गया है। किसानों को बट्टा खाते और कर्ज़ माफ़ी के बीच के अंतर पर भाषण दिए जा रहे हैं”।

सिद्दारमैया ने आगे कहा, “दशक में कम से कम एक बार किसानों को कर्ज़ माफ़ी की ज़रूरत है ताकि वो भी अपने खाते को साफ़-सुथरा रख सकें”

बता दें कि वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने बीते मंगलवार को राज्यसभा में एक लिखित जवाब में जानकारी दी थी कि वैश्विक परिचालन पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के डेटा के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने 2014-15 से सितंबर 2017 तक 241,911 करोड़ रुपये की राशि राइट ऑफ़ की है। हालांकि उन्होंने यह भी जानकारी दी कि इस राइट ऑफ़ के बाद भी बकाएदार भुगतान के लिए बाध्य होंगे।

क्या होता है राइट ऑफ़?

जब कर्जदार किसी लोन की ईएमआई बैंक को नहीं चुकाता है तो बैंक का राजस्व घटने लगता है क्योंकि तब उसे उस लोन पर ब्याज नहीं मिल रहा होता है।

जब यह एक सीमा से ज्यादा हो जाता है यानी बैंक की ओर से दिए गए लोन पर बैंक को कोई भी आय नहीं हो रही होती है तो रिजर्व बैंक के नियम के मुताबिक बैंक को इस लोन की रकम को बैलेंस शीट से हटाना पड़ जाता है, इसे ही राइट ऑफ कहा जाता है।

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