कासगंज में पुलिस ने दलित युवक को घोड़ी चढ़कर बारात निकालने की अनुमति नहीं दी। प्रशासन ने दलित से कहा कि वो उस इलाके से बारात नहीं निकाल सकता जहां उच्च जाति के लोग रहते हैं।
इस मुद्दे पर अब बहस छिड़ गई है। सियासी गलियारों से लेकर सोशल मीडिया तक पुलिस के इस बयान को लेकर राज्य और केंद्र सरकार पर तीखे प्रहार किए जा रहे हैं।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने जहां इसे दलित आंदोलन की एक वजह बताकर राज्य की बीजेपी सरकार पर निशाना साधा वहीं सोशल मीडिया पर लोगों ने इसके लिए हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद पर सवाल खड़े किए।
पत्रकार अभिसार शर्मा के पैरोडी अकाउंट से लिखा गया, “दलित राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठ सकता है पर घोड़े पर नहीं! ये कैसा हिन्दुत्व है फर्जी राष्ट्रवादियों”
दरअसल, हाथरस के रहने वाले संजय कुमार और शीतल की शादी कासगंज के निजामपुर गांव में 20 अप्रैल को होनी है। इसके लिए संजय कुमार ने स्थानीय पुलिस से संपर्क कर बारात निकालने की अनुमति मांगी थी, लेकिन पुलिस ने अनुमति देने से मना कर दिया था।
पुलिस ने कहा कि वह इलाका उच्च जाति के लोगों का है, उनके बारात निकालने से वहां हिंसा हो सकती है। यही नहीं 21 मार्च को कासगंज पुलिस और प्रशासन ने संजय को बारात निकालने के लिए 800 मीटर लंबे रास्ते का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था।