लगता है व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी का कुप्रभाव अब व्यापक रूप ले चुका है। समाज के वो प्रबुद्ध लोग जो आम जनता का नेत्तृव करते हैं वो भी इसके चपेट में आने लगे हैं। आठ बार लोकसभा सांसद के रूप में जनता द्वारा चुनी जा चुकी सुमित्रा महाजन व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी की लेटेस्ट शिकार हैं!

दरअसल लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन ने रविवार को एक कार्यक्रम में ऐसा बयान दिया जो व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के मुख्य विमर्शों में शामिल है। सुमित्रा महाजन ने आरक्षण पर सवा उठाते हुए कहा कि क्या शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण को जारी रखने से देश में समृद्धि आएगी?

उन्होंने आगे कहा “अंबेडकर जी का विचार दस साल तक आरक्षण को जारी रखकर सामाजिक सौहार्द लाना था। लेकिन, हमने यह किया कि हर दस साल पर आरक्षण को बढ़ा दिया। क्या आरक्षण से देश का कल्याण होगा?”

सुमित्रा महाजन ने आरक्षण को लेकर जो भी बोला वो तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत है। और जो गलत तथ्य उन्होंने पेश किया, मौजूदा वक्त ऐसे फर्जी तथ्यों का उत्पादन करने के लिए व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी कुख्यात है।

क्या है सही तथ्य

सबसे पहली बात, आरक्षण को लेकर घृणित भावना रखना संविधान को चोट पहुंचाना है। क्योंकि न सिर्फ संसद बल्कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी आरक्षण को उचित ठहराया जा चुका है। ये समाज के वंचितों शोषितों का संवैधानिक अधिकार है, भीख या अहसान नहीं।

सुमित्रा महाजन का सवाल है कि क्या शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण को जारी रखने से देश में समृद्धि आएगी?

इसका जवाब है नहीं। क्योंकि आरक्षण का काम गरीबों को अमीर (समृद्ध) बनाना नहीं है। आरक्षण गरीबी उन्मूलन अभियान नहीं है। इसका मकसद सामाजिक समरसता लाना है। सदियों से सामाजिक रूप से वंचित समुदायों को राष्ट्र का अंग बनाना है। उन्हें शासन-प्रशासन में हिस्सेदारी दिलाकर देश को छूआछूत और क्रूर जाति व्यवस्था निष्क्रिय करना है।

आरक्षण भारत में काफी हद सफल हुआ है। इसकी वजह से बहुत कम समय में वंचित समुदाय का एक बड़ा तबका मुख्यधारा से जुड़ा है। और ऐसा भी नहीं है कि आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ भारत है।

दुनिया भर के तमाम देशों में पिछड़े और वंचित समुदायों को मुख्यधार से जोड़ने के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। गैरबराबी असभ्यता की निशानी मानी जाती है। ऐसे में ज्यादातर देश अपने यहां सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व पर खास ध्यान देते हैं।

प्रतगतिशील माने जाने वाले अमेरिका में भी आरक्षण की व्यवस्था है। वहां ‘डावर्सिटी का सिद्धांत’ लागू है जिसके तहत अश्वेतों, महिलाओं, आदिवासियों से लेकर उन तमाम समुदायों को विशेष अवसर दिया जाता है जो वंचित रह गए हैं, जिनके साथ अतीत में अत्याचर हुआ है।

क्या आरक्षण 10 साल के लिए था?

जी नहीं। ये विशुद्ध झूठ है। और भारत में इस झूठ के उत्पादक ब्राह्मणवादी विचारधार के लोग हैं। डॉ. अंबेडकर ने कभी नहीं कहा कि आरक्षण सिर्फ 10 साल तक के लिए ही है। नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के लिए ऐसी कोई बात नहीं थी।

हां लेकिन, विधायिका में आरक्षण यानी राजनीतिक आरक्षण की समय सीमा 10 साल रखी गई थी। इसके बाद इसकी समीक्षा होनी थी। हर दस साल बाद यह समीक्षा होती भी है। और संसद पूर्ण बहुमत से इसे अगले दस साल के लिए बढ़ा देती है।

सुमित्रा महाजन के इस बयान पर बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी ने पलटवार किया है, उन्होंने लिखा- ‘मैडम स्पीकर, जिस 10 वर्ष समयसीमा की आप चर्चा कर रही है वह विधायिका में आरक्षण की समय सीमा थी, सरकारी सेवाओं में आरक्षण की नहीं। संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति को जानबूझकर देश को गुमराह नहीं करना चाहिए। किसी में हिम्मत नहीं जो इसे छू दें।’

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