प्रधानमंत्री मोदी और उनके तमाम मंत्री भले ही पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कर रहें है। मगर ज़मीनी सच्चाई इससे कहीं अलग है। यही वजह है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने इसे पहले ही ख़ारिज कर दिया था। अब इंडियन सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स की वाइस प्रेसिडेंट डॉ रितु दीवान ने भी साफ़ कर दिया है कि आने वाले 5 साल में ये लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते हैं।

दरअसल इंडिया टुडे के कार्यक्रम में अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दे पर कई अर्थशास्त्री एक मंच पर आए। जहां कार्यक्रम में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य डॉ. शमिका रवि, और सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स की वाइस प्रेसिडेंट डॉ रितु दीवान भी मौजूद थी। इस मौके पर डॉ रितु दीवान ने अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात पर अपनी राय जाहिर की।

इसपर उन्होंने कहा कि नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगा और इससे कई तरह की समस्याएं पैदा हुईं। नोटबंदी की वजह से संसाधनों की बर्बादी हो गई है और नोटबंदी का सबसे बुरा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर देखने को मिला है।

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जब ये कहा गया कि अर्थव्यवस्था को लेकर दो नजरिये से देखा जा रहा है। एक नजरिया यह है कि गिलास आधा खाली है जबकि दूसरा नजरिया यह है कि गिलास आधा भरा हुआ है। प्रधानमंत्री गिलास को हमेशा भरा हुआ ही देखते हैं। इसपर उन्होंने कहा कि यहां तो नोटबंदी के कारण गिलास ही टूट चुका है।

सरकारी के नोटबंदी के फैसले की वजह से छोटे-छोटे कारखानों पर बुरा असर पड़ा और भारी संख्या में फैक्ट्रियां बंद हो गई, और इसका नतीजा यह हुआ कि लाखों श्रमिक बेरोजगार हो गए। इसी तरह से जीएसटी भी विरोधाभासों से भरा कदम था। हेल्थ लोन, एजुकेशन लोन जैसे लोन महंगे हो गए।स्कूल फीस तक इससे प्रभावित हुई।

डॉ रितु दीवान से कहा कि नोटबंदी का सबसे बुरा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। उन्होंने कहा कि आज वहां हालत वैसे ही जैसे नोटबंदी के वक़्त बने हुए थे यहां तक कि मनरेगा के हालात भी नहीं सुधर नहीं दर्ज किया जा रहा है।उन्होंने कहा कि हालत ये है कि नोटबंदी के असर की वजह से महाराष्ट्र में ग्रामीण इलाकों में पैसा पहुँच ही नहीं पा रहा है। ये जमीनी हकीकत बयान कर रही है कि लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

उज्जवला योजना अच्छी मगर रिफिल के लिए भी पैसा चाहिए

डॉ रितु दीवान ने मोदी सरकार की उज्जवला योजना की तारीफ की, मगर उन्होंने कहा कि लोगों के पास रोटी खरीदने का पैसा नहीं है। सरकार से उज्जवला योजना के तहत लोग सिलेंडर और गैस चुल्हा मिल गया है, मगर उनके पास उसे दोबारा भराने के लिए पैसे नहीं रहता है। इसी तरह स्वच्छ भारत मिशन पर काफी ज्यादा बजट खर्च कर दिया गया जबकि साफ-सफाई की हर आदमी को बेसिक समझ होती है।

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जब तक भूमि सुधार नहीं होगा अर्थव्यवस्था की स्थिति में कारगर सुधार नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने कश्मीर, केरल और गोवा का उदाहरण देते हुए बताया कि जिन राज्यों ने भूमि सुधार लागू किए हैं वहां अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में मिलती है।

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