मोदी सरकार अपने साथ कई सारी नई चीज़े लेकर आई है। ‘इन्वेस्टमेंट समिट’ भी इन्ही में से एक है। इस साल ये काफी चर्चित रहा। बहुत से प्रदेशों में इन्वेस्टमेंट समिट हुए। हाल ही में ये समिट उत्तर प्रदेश में भी हुआ है। इसके बाद से ही राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बड़े-बड़े वादे करते नज़र आ रहे हैं।
इस समिट में 4 लाख 28 हज़ार करोड़ के निवेश के वादें हुए, लेकिन क्या ये ज़मीन पर उतर पाएँगे? ये जानने के लिए गुजरात को देखा जा सकता है। क्योंकि यही से देश में इन्वेस्टमेंट समिट की शुरुआत हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए इसकी शुरुआत की थी।
इन इन्वेस्टमेंट समिट में दुनियाभर से लोग आते हैं और हज़ारों करोड़ रुपये निवेश करने के वादे होते हैं। लेकिन वादें करने और निभाने में फर्क है। इस सम्मलेन में जो वादें किये जाते हैं वो काफी खोखले होते हैं क्योंकि उनमे से आधे वादें भी निभाए नहीं गए हैं।
2003 में इस समिट की शुरुआत गुजरात में हुई थी। तब विदेशी निवेशकों के साथ 76 एमओयू (समझौता) पर हस्ताक्षर किये थे और 66 हज़ार करोड़ राज्य में निवेश करने का वादा था। समय के साथ साथ एमओयू और रकम की संख्या बढ़ती चली गई।
2011 के सम्मलेन में 21 लाख करोड़ निवेश का वादा हुआ और इस साल 2017 में 25 हज़ार 578 एमओयू पर हस्ताक्षर किये गए लेकिन निवेश की रकम का खुलासा नहीं हुआ है।
एमओयू एक ऐसा समझौता होता है जिसे निभाना अनिवार्य नहीं होता। इसीलिए इन्वेस्टमेंट समिट में जितने एमओयू पर निवेश के वादें किए वो सिर्फ लिखे हुए ही रह गए। 2003 से अभी तक गुजरात में जितने भी समझौते किये गए हैं उनमे से 10% से भी कम पर अमल हुआ है।
अगर विदेशी निवेश की बात करे तो उद्योग नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के अध्ययन से पता चलता है कि 2000 से 2013 के बीच भारत में 9.1 लाख करोड़ का विदेशी निवेश हुआ है जिसमें से गुजरात में केवल 39,000 करोड़ का निवेश हुआ है। जबकि इस बीच वाइब्रेंट गुजरात के एमओयू देखे जाए तो लाखों करोड़ के वादें निकलेंगे।
इस सब के बावजूद इन इन्वेस्टमेंट समिट में करोड़ो रुपये खर्च किये जाते हैं। उत्तरप्रदेश में भी इस समिट पर लगभग 65 करोड़ रुपये खर्च किये गए हैं।
दरअसल, ये एक चकाचौंध आयोजन होता है जिसमें सिर्फ बड़ी रकम के वादें किये जाते हैं। सरकार को मीडिया में बताने और नेताओं को चुनावी सभाओं में बोलने के लिए बड़ी-बड़ी रकम के आकड़े मिल जाते हैं। लेकिन जो सपने दिखाए जाते हैं वो पूरे नहीं होता। कम से कम इस मामले में भाजपा के ‘मॉडल प्रदेश’ गुजरात का इतिहास तो यही कहता है।