भारत अब सिर्फ कागज़ों पर ही एक लोकतंत्र रह गया है। जनता के नौकर कहे जाने वाले नेता अब उनके बाप (भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के शब्दों में, उन्होंने एक टीवी डिबेट के दौरान पीएम मोदी को देश का बाप बताया था) बन चुके हैं। देश की न्यायपालिका जजों की मौत से डरी हुई है। वहीं लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ मीडिया पैसे और ताकत के लिए लोकतंत्र को गिराकर झूठ को खड़ा करने में लगा है।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं और अब जनता को उन आकड़ो तक पहुँचने से भी रोक दिया गया है जिनसे उन्हें अपने हालात की सच्चाई पता चल सके।
इस देश में विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी रहती है। युवाओं की सबसे बड़ी भूख रोज़गार उन्हें नहीं मिल रहा है। फिर भी ये युवा आबादी सड़कों पर प्रदर्शन करती नज़र नहीं आती है। क्योंकि ये लोग व्हाट्स-ऐप पर देश का तथाकथित इस्लामीकरण होते देखने, टीवी पर सरकार की गोद में बैठे एंकरों के चिल्लाने का मज़ा लेने और कुछ नेताओं के आगे ‘जी’ लगाने में व्यस्थ्य हैं।
दूसरी तरफ सरकार इनकी बर्बादी का पूरा इंतेज़ाम कर चुकी है और मज़े की बात ये है कि ये बात सरकार इनको पता भी नहीं लगने दे रही है। मध्यप्रदेश में बेरोज़गारी से परेशान होकर मरने वालों युवाओं की संख्या सालाना 579 हो गई है। लेकिन इस बारे में किसी को पता नहीं क्योंकि ये आंकड़े पिछले दो साल से बंद करा दिए गए हैं।
अभी तक मध्यप्रदेश किसानों की आत्महत्या और अमेरिका से तथाकथित बेहतर सड़कों के लिए जाना जाता था। लेकिन अब आकड़े दिखा रहे हैं कि मध्यप्रदेश में युवाओं की आत्महत्या दर भी बढ़ती जा रही है और इसका कारण है बेरोज़गारी।
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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक्सीडेंटल डेथ्स एंड सुसाइड इन इंडिया (ऐडीसीआई) की अपनी रिपोर्ट में बताया है कि मध्यप्रदेश में हर साल बेरोज़गारी के कारण 579 युवा आत्महत्या कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रतिदिन 2 युवा बेरोज़गारी से परेशान होकर आत्महत्या करते हैं। 2005 में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या करने वालों की सालाना संख्या 29 थी। जो 2015 में बढ़कर 579 हो गई है।
बता दें, कि मध्यप्रदेश में 2003 से लगातार भाजपा की ही सरकार है। आकड़ों को देखे तो भाजपा राज के दौरान राज्य में बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या करने वालों की संख्या 20 गुना यानि 2000 प्रतिशत बढ़ी है। पूरे देश में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी के कारण मध्यप्रदेश में ही युवा आत्महत्या करते हैं।
राज्य सरकार ने 2015 के बाद से बेरोज़गारी के कारण आत्महत्या करने के आकड़े बंद करा दिए हैं। गौरतलब है कि हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार ने भी देश में बेरोज़गारों की संख्या बताने वाले सर्वे को बंद करा दिया है।
शिवराज और मोदी सरकार के इस कदम से जनता का क्या फायदा होगा ये तो पता नहीं। लेकिन इससे राज्य से लेकर केंद्र तक की सरकारों के नेताओं को अपने चुनावी भाषणों में ज़रूर मदद मिलेगी। वो जनता के सामने कुछ भी आकड़ा बोलकर जा सकेंगे। क्योंकि जनता के पास बेरोज़गारी को लेकर कोई आकड़ा नहीं होगा।
असल में ये एक बहुत खतरनाक स्तिथि है जब जनता ये भी नहीं जान सकेगी कि उसकी असल हालत क्या है। जब रोज़गार और रोटी की बात करेंगे तो उनके सामने बॉर्डर और सैनिकों तस्वीर रख दी जाएगी और जब कोई सैनिक जली रोटी को लेकर सवाल उठाएगा तो उसे सेना से निकाल दिया जाएगा।
क्योंकि वो स्तिथि बनाई जा रही है जिसमें बॉर्डर पर जान गँवाने वाला भी नहीं बल्कि महंगी गाड़ियों में घूमने वाला और बंगले में रहने वाला नेता ही सबसे बड़ा राष्ट्रवादी होगा। जब इस सबसे भी काम नहीं चलेगा तो जनता देश में मुस्लिम और ईसाईयों की तथालाथित बढ़ती जनसँख्या और कथित लवजिहाद के नाम पर टहलाया जाएगा।
ये बहुत ही खतरनाक समय है जब हम लोकतंत्र के नाम पर एक ऐसी व्यवस्था में रह रहे हैं जहाँ हमें आवाज़ उठाने की आज़ादी नहीं है। हमारे दिमाग में ‘अच्छे दिनों’ की एक तस्वीर बनाई जा रही है और आकड़े, सर्वे बंद कर असल स्तिथि से दूर किया जा रहा है।
विश्व में ऐसा एक और देश है जहाँ कि जनता का यही हाल है। ‘नॉर्थ कोरिया’ की जनता जिनको लगता है कि पिछले सात साल से वो लोग फुटबॉल वर्ल्डकप जीत रहे हैं और उनका देश विश्व का सबसे शक्तिशाली देश है। ये ऐसे ही है जैसे पीएम मोदी को यूनेस्को ने विश्व के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री होने का अवार्ड दिया है और हाँ मत भूलिए दो हज़ार के नोट ‘चिप’ है। लेकिन वो आपको नहीं मिलेगी क्योंकि उसके लिए तथाकथित राष्ट्रवादी होना ज़रूरी है जो सिर्फ एक ही पार्टी और विचारधारा के लोग हैं।