उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक दो सरकारों के कामकाज के गवाह है। उन्होंने अपनी बुजुर्ग आँखों से अखिलेश की समाजवादी सरकार और अब योगी आदित्यनाथ सरकार को देख रहे हैं। लेकिन सवाल है कि क्या राम नाईक ने दोनों सरकारों के प्रति अपना उत्तरदायित्व बखूबी निभाया है? राम नाईक सरकार में कुछ गलत होते देख राज्यपाल की भूमिका निभाते हैं? या सिर्फ पद पे बने रहकर सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं।

आकड़े बताते हैं कि 22 जुलाई 2014 से उत्तर प्रदेश का राज्यपाल रहते राम नाईक ने 2017 तक अखिलेश सरकार में छोटी सी घटना घटने पर जो उनकी पार्टी “बीजेपी’ को अच्छी नहीं लगती, उसपर अपनी प्रतिक्रिया देते थे। अखिलेश सरकार में रेप के आरोपी कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति की गिरफ्तारी को लेकर राम नाईक ने तब के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बेहद ही कड़े शब्दों में पत्र लिखा था।

तब राम नाईक को प्रजापति की गिरफ्तारी को लेकर लोकतान्त्रिक मूल्य, शुचिता से लेकर संवैधानिक मर्यादा तक सब याद आ गया था। लेकिन अब खुद उनकी पार्टी के बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगा है और उनके गिरफ्तार होने के सभी सबूत मौजूद होने के बाद भी माननीय राज्यपाल ने एक भी पत्र मुख्यमंत्री योगी को नहीं लिखा है।

बता दें कि मामला सामने आने पर गायत्री प्रजापति पर FIR दर्ज होने के साथ में गैर जमानती वारंट जारी कर दिए गए थे। लेकिन योगी सरकार बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर को बचाने के लिए एड़ी-छोटी का जोर लगा रही है।

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