उत्तरप्रदेश की योगी सरकार बिजली वितरण यानि बिजली को उपभोक्ता तक पहुँचाने के लिए निजीकरण करने जा रही है। इसी के विरोध में राज्य के बिजली कर्मचारी सड़कों पर उतर आए हैं।

उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) ने सात ज़िलों में बिजली वितरण ठेके के लिए टेंडर निकाल दिया है। टेंडर 5 मार्च को खुलेगा और पूरी प्रक्रिया 28 मार्च तक पूरी हो जाएगी। नीजिकरण के बाद निजी कपनियां नए कनेक्शन लगाएगी, मीटर बदलेंगी, मीटर रीडिंग लेंगी, बिजली बिल देंगी और पैसे वसूलेंगी। जबकि इस सब का रखरखाव सरकार करेगी।

राज्य के बिजली कर्मचारियों का कहना है कि अगर इस निजीकरण के कदम को वापस नहीं लिया गया तो वो अनिश्चितकाल हड़ताल पर चले जाएँगे। इसके लिए उन्होंने ‘पावर कर्मचारी संयुक्त कार्रवाई समिति’ (पीईजेएसी) का भी गठन किया है।

28 फरवरी को भी कर्मचारियों ने लखनऊ में उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के दफ्तर के आगे प्रदर्शन किया था।

गौरतलब है कि केंद्र की मोदी सरकार भी बिजली वितरण का पूरे देश में निजीकरण करने के लिए बिजली (संशोधन) विधेयक 2014 लाई है। आने वाले संसदीय सत्र में इस बिल पर बहस हो सकती है। इस बिल का भी देशभर के बिजली कर्मचारी विरोध कर रहे हैं।

बिजली कर्मचारियों का कहना है कि ये व्यवस्था दिल्ली में लागू करी गई थी जहाँ ये नाकामयाब साबित हुई। इस व्यवस्था से बिजली के बिल महंगे होंगे और जनता को कोई फायदा नहीं होगा। दिल्ली में भी ये बिल इतने महंगे हो गए थे कि ये 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया था।

पीईजेएसी के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने न्यूज़क्लिक को बतया कि सरकार ने सात ज़िलों के लिए सात कंपनियों को ही बोली से पहले की मीटिंग में बुलाया। मतलब कंपनी को पहले से ही सरकार द्वारा चुन लिया गया है। इससे भ्रष्टाचार बढ़ सकता है।

उन्होंने कहा कि बिजली बिल कितना रहेगा इसमें सरकारी एग्जीक्यूटिव इंजिनियर की भूमिका बहुत कम हो जाएगी और कंपनी की बढ़ जाएगी। इस कारण बिजली के बिल बढ़ सकते हैं जिसकी मार आम जनता पर पड़ेगी।

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