राफेल डील पर फ़्रांस राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों कुछ भी कहने से बचते नज़र आ रहे है। उन्होंने राफेल पर बोलते हुए कहा कि ये राफेल डील सरकार से सरकार के बीच हुई है और जब ये डील हुई तब मैं सत्ता नहीं था।
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अगर एमैनुएल के बयान की माने तो वो सत्ता में नहीं थे मगर इससे पहले फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ने इस डील में भारत सरकार द्वारा ‘रिलायंस डिफेन्स लिमिटेड’ के अलावा विकल्प न दिए जाने की बात कही थी।
French President Emmanuel Macron said that he was not in power when the controversial Rafale fighter jets deal was signed between India and France
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— ANI Digital (@ani_digital) September 26, 2018
दरअसल राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों से एक प्रेस कांफ्रेंस में पूछा गया कि क्या भारत सरकार ने फ्रांस या फ्रांस की दिग्गज एयरोस्पेस कंपनी दसाल्ट से कहा था कि उन्हें राफेल करार के लिए भारतीय साझेदार के तौर पर रिलायंस को चुनना है।
इसपर उन्होंने पहले जवाब दिया कि मुझे इस मामले में कुछ नहीं बोलना है। मगर बाद में उन्होंने कहा कि मैं उस वक़्त पद पर नहीं था और मैं जानता हूँ कि हमारे नियम बहुत साफ़ है।
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उन्होंने कहा कि ये डील सरकार से सरकार के बीच हुई है और ये अनुबंध एक व्यापक ढांचे का हिस्सा है जो भारत और फ़्रांस के बीच सैन्य और रक्षा गठबंधन है। जो मेरे लिए बहुत अहम हो जाता है क्योंकि ये सिर्फ एक सिर्फ औद्योगिक संबंध नहीं बल्कि एक रणनीतिक गठबंधन है।
गौरतलब हो कि पिछले दिनों फ़्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलांद ने फ़्रांस के न्यूज़ संगठन ‘मीडियापार्ट’ के साथ इंटरव्यू में कहा है कि फ़्रांस ने रिलायंस को खुद नहीं चुना था बल्कि भारत सरकार ने रिलायंस कंपनी को पार्टनर बनाने का प्रस्ताव दिया था।
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अब सवाल ये उठता है कि बीजेपी के अनुसार फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति बोले रहें और मौजूदा राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों सच बोलने से बच रहें तो आखिर राफेल का सच क्या होगा। मोदी सरकार को बता देना चाहिए कि आखिर डील से 10 दिन पहले बनी रिलायंस डिफेन्स की एंट्री करने की पीछे की वजह क्या थी?
साथ ही इस मामले पर सफाई देनी चाहिए कि भारत की सरकारी कंपनी ‘हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड’ का नाम समझौते से हटाकर अनिल अंबानी की ‘रिलायंस डिफेन्स लिमिटेड’ का नाम विमान समझौते में क्यों दिया गया।
क्या है विवाद
राफेल एक लड़ाकू विमान है। इस विमान को भारत फ्रांस से खरीद रहा है। कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि मोदी सरकार ने विमान महंगी कीमत पर खरीदा है जबकि सरकार का कहना है कि यही सही कीमत है। ये भी आरोप लगाया जा रहा है कि इस डील में सरकार ने उद्योगपति अनिल अंबानी को फायदा पहुँचाया है।
बता दें, कि इस डील की शुरुआत यूपीए शासनकाल में हुई थी। कांग्रेस का कहना है कि यूपीए सरकार में 12 दिसंबर, 2012 को 126 राफेल विमानों को 10।2 अरब अमेरिकी डॉलर (तब के 54 हज़ार करोड़ रुपये) में खरीदने का फैसला लिया गया था। इस डील में एक विमान की कीमत 526 करोड़ थी।